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(१८३ ) एक देव पल्लव निकुरंब पूरितान्तरितु, नीपजावइ किकिल्लि वृक्षु । इस धजविंध पताका समलंकृतु समवसरणु रचहि । पु० अ०
(१२) समवसरण में देवों की विविध भक्ति ज्ञानि ऊपनद, इद्रादिक देव श्रावइ समवसरण तणी भक्ति साचवइ'। एकि देव अतिस्फार, नीपजावइ प्राकार । एक तेनः संभारभासुर सुर करइ सुवर्ण प्राकार। एकि रत्न द्युति विघट्टिताधकार करइ रत्न प्रकार । एक उदारस्फार नीपजावई प्रतोलीद्वार । एक लोचन समुल्लासन नीपजावइ । सिंहासन प्रसारित दिग्मडल, नीपजावइ भामंडल । विस्मापित जगत्रव, नीपजावई छत्रत्रय । कोई संपादित भुवनोत्कर्ष, करइ कुसुम वर्ष । के० भूमि स्थित धवल ढालइ चमर युगल | के० दवेक्षण करइ प्रेक्ष (ण)। के० विस्तारउ सर्व सार, वीणा झंकार । केई अति स्फीत, गायई परमेश्वर नउ गीत ।
१३ जिनवाणी वर्णन (१) बारइ परिषद पूरि, मित्थात्व मान मूरि, पाप कर्म चूरि । सर्व सत्व साधारिणी, योजन नीहारिणी । चतुर्दा धर्म प्रकाशिनी, यारि कषाय निर्नाशिनी । भव्यजन कणामृत साविणी, कुमत विद्राविणी। ससार समुद्र तारिणी, आश्चर्य कारिणी। पर दर्शन क्षोभिणी, चतुत्रीस वचनातिशय शोभिनी । सकल क्लेश विश्वासिनी, उत्तम चतुर्विध सघ प्रशसिनी। अष्ट कर्म बल विदारिणी, दुर्गति पतजनतोद्धारिणी। सभा जन ससय हारिणी, मोक्षोपाय विधायिनी, सर्व वंछित दायिनी । इसी वाणीयइ करी, लोक ऊपरि हित श्रादरी । चतु. प्रकार, सर्वसार, जगत्रनर आधार । धर्म मार्ग उपटिसइ, भविक लोक तणइ हीयइ बसइ । सू० । १ भावदि रुप्पमय प्राकारू ।