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कर सकते हैं ( १ ) भेद प्रभेदों एवं नामावलियों का विस्तार ( २ ) वस्तु और घटना का छटाकार अलंकृत शैली में चित्रण । इसमें तुकांत प्रासयुक्त गध की प्रधानता इसकी रोचकता में चार चाँद लगा देती है। छंद के बंधन से सुन्त होने पर भी तुकांत और मामयुक्त वर्णन शैजो बहुत ही मनोहर एवं श्राकपंक है । प्रस्तुन संग्रह में उपरोक्त दोनों प्रकार के वर्णन पाठको को देखने को मिलेंगे।
दो अन्य राजस्थानी वर्णनसंग्रह ग्रंथ-इस ग्रंथ में संगृहीत सभी वर्णन जैन विद्वानों के लिखे हुए है पर जैनतर लेखकों ने भी ऐमी कुछ रचनाएँ की है जिनमें से दो गजस्थानी रचनाएँ 'खीची गगेव नींबावतरो रो दोपहरी और राजान राउतरो बात बणाव' मेरे विद्वान् मित्र श्री नरोत्तमदास जी स्वामी संपादित राजस्थान पुरातत्यान्वेपण, प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर से राजस्थानी साहित्यमग्रह भाग ५ में प्रकाशित हो चुकी हैं। ये दोनों ही रचनाएँ किसी चारण विद्वान् की लिखी हुई प्रतात होती हैं। इनमें प्राप्त होनेवाले दर्णन बहुत ही सुदर और लान्कृतिक दृष्टि से बड़े ही महत्वपूर्ण हैं। बात बणाव का अर्थ है कि बात किम तरह बनानी अर्थात् कहनी व लिखनी चाहिए। राजस्थान में हजारों बातें (वार्ताएँ, कथा कहानियाँ ) बड़े चाव से कही सुनी जाती रही हैं। बातो को अच्छे ढग मे छादार चोली में कहनेवाले व्यक्तियों को राजानों ठाकुरों श्रादि के यहाँ बड़ा संमान तो मिलता ही था पर जनसाधारण में भी उनका बड़ा श्रादर था । यद्यपि सैकड़ों राजस्थानी बातें लिखित रूप में भी मिलती हैं पर मौखिक रूप से कहने का ढग वड़ा ही अनोखा और निराला होता है जो कि लिखित रूप में प्रायः नहीं पाया जाता। फिर भी कई बातो में कई प्रसंग बड़े सुंदर रूप से लिखे हुए मिलते हैं।
वर्णकों के प्रति श्राफर्पण -वर्णकों के प्रति मेरा यार्पण बाल्यकाल से है जय मै ८-१० वर्ष का था तो पर्युपणो में कल्पसूत्र सुनने के लिये पिताजी आदि के साथ व्याख्यान में जाया करता था। कल्पसूत्र की लक्ष्मीवल्लभी टीका कल्पद्रुम कलिका में कई जगह राजस्थानी भाषा के सुदर वर्णक हैं जिन्हें सुनकर मुझे वढा श्रानद मिलता था। टीकाकार लक्ष्मीचल्लम ने ऐसे वर्णकों को 'वागविलास' ग्रंथ से उद्धृत करने की सूचना दी है अतः उस वागविलास ग्रथ को , प्राप्त करने की बड़ी उत्कठा हो श्राई पर कई वर्षों तक उसका कोई अनुसधान नहीं मिल सका।