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जैन भढांगारीय ग्रंथसूची के पृष्ठ ७४ से ७६ में प्रकाशित होने पर भी इस महत्वपूर्ण ग्रंथ की घोर अभी तक विद्वानों का ध्यान नहीं गया । इस ग्रंथ की ११५ पत्रों की एक प्रति सघवी पाढे के जैन भडार में है । ग्रथ अभी तक प्रकाशित होने से इसका थोड़ा सा अंश पाटण भंडार सूची से यहाँ उद्धृत किया जा रहा है
श्रातां नगरवर्णन
आटालिया, ऊपरीया, सालीया, गजद्वारें, राजद्वारे खढकीहारें, बाइलवाढे, चौकिया, मनोरम विलासमुरें ।
प्रसिद्ध सिद्धांचे निवेश
बौद्धाचे विहारा, जिनाचीं जिनालयां, कनकशाला, टकशाला, होमशाला, श्रध्ययनशाला, गीतनृत्य वाद्यशाला, जेणशाला, चित्रशाला, धर्मशाला, मद्यशाला, हस्तिशाला, ब्रह्मशाला |
श्रतेक मठ मढिया
'करुप्रायें नडें चौकिया धवनहारें वसुश्रारें मालवघें कोचनि बद्ध कोठारें, कोटिना, कड़ी, घोड डी, [क] ल्हस, दुबाले श्रावासगिया । सिंपणहारी, धूपताकासह ( ख ) प्रकटिते, उत्तगगिरि शिखरमकार्से देवतायतनें, चतुष्पथें २ विचिन्न चित्रित सभा मंडप | स्वर्णकलशा लंप्रासादसहश्रु ( स्रु ) । जैसे - गगन सरोवर कनककमलमुकुलीं अलकृत, मयूर, पारावत, चकोर, राजहस | तेया चित्रां प्रासादावरि इतवेतश्च संवरतेति श्राकाशसरोवरों जलविहंगमा ब्राह्मणभवनीं ऋचा व सामाचे उद्घोष सायंप्रातरग्निहोत्र हवने मंगलप्रकासक होमधूम । सुरभिपरिमलालकृत श्रीमंत भवनीं वहकते अगरुधूम । क्रय-विक्रय व्यवहारीं, लसभ्रम हट्टशाला प्रदेश | ठाई ठाई सतीस दढायुधां वे सरांवाचे या गरुडी | तांडवलास्यभेदें | भावका नटांसि पात्र परिपाठ वाचीं श्रभ्यासस्थानें । गोववते श्रगसरादींविश्वसाला । घटप्रासादसाधकां देसी मार्गसाधनें । तत feaत वन सुखिर वाद्य वादका सरावांची एकांतस्थानें परमप्रवोधा नंदनिर्भरां मुनीं वेद्याख्यान मठ राउलि वांसिह वारीं डाचिये कजिवीये भुने तीं तीं भूमींचीं भूविलासिणिचों धवलहारे।' इसके बाद सभा आदि के वर्णन है ।
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वर्णन प्रकार - वर्णन करने की प्रणाली में मुख्यतया दो बातों की चोर हमारा ध्यान जाता है श्रर्थात् प्रधानतया वर्णनों को दो प्रकारों में विभाजित