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(१७८) केवल ज्ञान लक्ष्मी सनाय, मन्य लोकन्दि मुक्ति मार्ग तणउ दिखाडह साथ । संसार कूपि पडता प्राणि वर्ग' हुइ दिइं हाथ । युगला धर्म निवाग्वा समर्थ, परमेश्वर सदर्थ । श्री आदिनाथ श्री संघ तणा मनोरथ पूरउ ।१। जो०
(४) जिन विंव (१)
नासाग्र न्यस्त दृष्टि युगल, श्रीवत्सलाछित वक्षस्थल । पशासन विधृत कर युगल, प्रकटी कृत वस्त्रांचल । शरीर तेजच्छटा छोटिताधकार जाल, त्रैलोक्य सुखाल वाल । ६३जो (२)
नासाग्र विन्यस्त दृष्टि युगलु, श्रीवत्स लाछित वक्षस्थलु, पमासनोत्सग विधृतकरकमलु, प्रगटीकृत वस्त्रांचलु शरीररश्मिच्छटाच्छोटितान्धकार । अस विंबु । ( पु. अ.)
(५) परमेश्वर की नख कांति निसउ गुजा तणउ अर्द्धभाग, जिमउ पद्मरागु। . जिस्वउ मजीठ रगु, सिट बासू ण उ पुष्प, जिसउ प्रवाल भंगु । जिसउ चोल मजीठ, जिसी राती टसरि । जिसी अशोक तणी कूपलि, जिसी कुपति कपि कपोल । जिसउ विंची तण फूलु, जिसउ अभक्रक । ' जिसउ सिंहरू, जिसउ ऊगतउ सूरू। जिसउ कुंकुम, जिसउ कुसुमउ । जिसउ हिंगुल, जिसउ शुक चचु । तिसी परमेश्वर तणी चरण नख काति ।। ८६ ॥ जै० (६) केवल ज्ञान से देखा हुआ अन्यथा नहीं होता (१)
कटाचित् समुद्र मर्याद मेल्हइ, कदाचित् श्रादित्य पश्चिम जगइ ।
" अमृत विषु परिणमइ, ४ पटता। ५. भगवत।