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( २० ) वणिक वर्णन रिद्धिवन्त पुन्यवत, कपूरे कोरला करे । अद्भुत शृंगार समाचरें, नित नवा अलंकार बावरें। कमल फूल त्रिदश आदरें, हिंडोला खाटनी लीला करें। भोग पुरन्दर होइं फिरे, सकल स्त्री जन लोचन हरें । दृष्टि राधो ठाम विकार न करें, नवा नवा विलास करें। महता भोजन जीमे, खडोखली तणा पाणी नहर । दयावंत चित्तधर, पर उपकार कर । ललित गर्भेश्वर, द्रव्य अर्चनेश्वर ( अविनश्वर ?)। सालिभद्रानुकार, मद मुद्रावतार । निरतर तत्रोल संभरें, पंच प्रकार विषय सुख माणे, अग्यो श्राम्यो न जाणे, दिन प्रति विलास हँसे, एहवा महाजन वर्से । भोग पुरंदर, सौभाग्य सुन्दर । भवादि जलधर, ताबूल सनागर । बोडी वैरागर, माननीय मनोहर । लीला अलवेसर, लीला शालिभद्र, इत्यादि भोग पुरंदर ।
(२१) श्रेष्ठि जसु बणइ प्रदक्षणावर्त संखु, चिन्तामणि रत्नु। . फरस पाषाण पुरिसउ, कोटि वेधु रसु, कालउ चीत्रउ । चोटीया द्रास, जलतरणि हीरउ, कवडी पोतह, सखिणि पदमिणि । वेड लक्ष्मी निधान कलस आणइ, लाखि दीवउ ज्वला । ध्वज लहलहइ, इसउ पनउतउ सेठि ॥
(२२) सुखी श्रेष्ठि श्रीमंतु, रिद्धिमंतु । काकनि करला करइ । फोफले कग्ग जडावइ । महु पूछी नीमइ । कहि पूछी पहिरइ । ललित गर्भश्वरु । शालिभद्रावतारु ।