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( १ ) ४ सत्पुरुष के स्वाभाविक गुणों की उपमा (४)
सत्पुरुष स्वभाव
कः शशिन' शीतलं करोति, को दुग्ध धवलयति । को मयूर पिच्छानि चित्रयति, कः शर्करा · मधुरा* करोति । कोमृत सर्वरसा - स्वादं धत्ते, को गगा पवित्रयति । हंसाना को गति शिक्षयति, कः पद्मरागं रंजयति । कश्चपक' सुरभी करोति, को जात्यमणिपु काति कलाप । कः सरस्वती पाठयन्ति, को लकाया अलकारं कुरुते । तथा साधु पुरुषस्य त्वभावेन गुणाः ॥ ( स० १)
५ सज्जन स्वभाव उपमा (५)
चद्रमा नै कुण शीतल करै ? अगनि नै कुण दाह करै ? दुग्ध नै कुण धोले छै? . . मयूर पीछ नै कुण चित्रै ? लक्ष्मी नै कुण नोत्रै १ क्मल नै कुण मधुरा करें ? गंगोदक नै कुण पवित्र करे ? हस नै गति कुण सीखवै ? जुआरी नै कुण भीखवै ? चपक नै कुण सुगध करें ? सारदा नै कुण भणावै ? लोका नै कुण दीपावै ? स्त्री नै कपट कुण गोखावै ? वृहस्पति नै कुण वचावै ?
१ शिशिरी २ मधुरी 3 ब्रह्म ४ को मेघानभ्यर्थयति, ५ इनके बदले में यह पाठ-को नालिकेर जल क्षिपति
क कोकिला स्वर 'माधुयं विदधाति। -
को वृत्तता नयति मौक्तिकान्। मु. कु में विशेष पाट-तथा को पुत्रो विनय नयति ।