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( १ ) भाला री भचाभचि, बकतर भेदी लागइ विचाविचि । घोडे घाली पाखर, आडो पाया जाणे भाखर । कहता तो घणाही कहइ, ते विरला सूर जे इसइ रिण ऊभा रहइ । एहवा सब्द सहइ, ते कवि कहइ । देठ लागा, माहो माह बहर जागा । जे हुंता सेनानी, ते धुर थी हुया कानी । जे हुता कोटवाल, ते पिण नाठा तत्काल । जे हुता एक एकडा, तीयारइ नाम नामइ दीया छेकडा । जे हुता फोजदार, तीयारइ सिर पडी मार । जे हुता फउज विडार, ते हुआ कहार । जे हउसे बाधता कटारी, तीयानइ ते पडी मारी। जे हुता खवास, तीया मुकी जीविवारी पास । जे वणवत्ता सागी बाकी, तीया नासिवा नइ वाट ताकी । जे पहिरता मोटा साडा, तीया नासता कीधा कोडि पवाडा । जे ढोलरइ ढमका मिलता तिकेपिण दीसइ टलता। काविली मीर, नाखइ तीर । इस्यै रणि जे पामइ जय, तेहनइ पोतइ पुन्य निचय । सू०
युद्ध-वर्णन (५)
परदल मिलई, सुभट कल कलइ । नीसाणि धाय वलइ, पताका झलहलइ ।
ओरणि माडीयइ , अर्द्धचद्र बाण खडियइ । भट्ट हक्का हक्क करइ , देवागना वीर वरइ । विद्याधरी पुष्प वृष्टि करई, धनुर्धर बाण तणी श्रेणी वावरई ।
आकाश मंडलि ग्ध्र फिरइ, सीचाणा समली साचरइ । हाथियानी घटा गुडी, घोड़े पाखर पडी। विहुगमा दल मिलइ, धूलि पटल उछलइ जेतइ सुभट गाजइतेतलइ कायर थरहरई। जेतइ सुमट बाधइ कसणा तेतलइ कायरथाइ नासणा । जे० खङ्ग खङ्गिइ, लीजई, तेतलई कायर मन माहि खीजह ।