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कायर तक्खणि पड़इ। दल आफलइ, कायर खलभलइ । मड़ मूझइ, कायर मूझद। भड मल्हइ प्रहार।। कायर जोय बार। वीरह मुडी पड़ा। कायर पीडी चड़ा। तिणि सग्रामि हृदय दृढ करी सन्नाहु करिउ । एक मनु धरिउ । खाभनी खणीउ। पय घरट्ट बाधित चाण साघिउ। रिणि राना चढिउ। जिहा धूलि पटल सर्वत्रइ ऊछलिया।कोइ आपु पर विभागु न बूझह । पिता पुत्र न सूझा। न जाणियह आत्मदलु। न जाणियइ हायिया तणह गुलगुला-रवि । तुरंगम तणइ हिणहिणकारि । रथ तणइ चीत्कारि भाट नगारी तणइ कयवारि । इसइ समरि भरि वर्तमानि हृतह सुहड सूडइ, सगुण हाथि लूडइ । रथावली उथिलावइ, मउडबद्धा माकड्ड जिंव खिलावइ । पाखरिया थाट हणाइ। दल समदाय भाजइ, दलवह गांजा सत्रु कंधावार तणा कंट। समग्र तृण समान करिउ गणइ । . . इसउ संग्राम । बहल कुंकुम तराइट छडउ दीन्हइ कत्रिका तणा त्तत्रक पडिया चावना श्रीखंडहणी गृहली दोन्ही