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(७३ ) समरु सांघइ वेझउं वीघह। कोसीसा उतारइ, निटोल मारइ ।
४ योध-पायक जेह तणुं जाणइतुं कुल, स्वामि तणुं बल । ' आगलि आचार चालइ, थोडूं बोलइ। ." छह दर्शन नमइ, ठाकरहिं गमई। सग्रामि युद्धर, परनारि सहोदर । पागे काम करइ, स्वामि काज मरइ । रणि वहरी नई हाकइ, हथीबार ताकइ ।' बोलावी दिइ घातइ, जाणइ युद्ध तणु उपाय ।
६५ युद्ध-वर्णन (१) बिहुँ पखा दल मिल्या । . . सर्वत्र धूलि-पटल अछल्या। . . कोई आप-पर बूझा नहीं। न जाणीह आपुदल सर्वे एकंकार प्रतिभासइ । केतलउ गज सारसी करतउ जाणियह । तुरंगम हेषारवि जाणियइ । रथ चीत्कारि जाणियइ, विधि पताका जाणियइ, किंकिणी नारि जाणियइ, सुभट मनोरथ मालियइ, - होन हृदय ना शस्त्र ऊदालिया । तुरंगमे खुरे करी पृथ्वी दलीइ । काहली बडबडद। प्रहारि जर्नरित खडहडई। कवध धरा पडई। राजपुत्र घोड़ चडइ। सूरवीर गहगहइ, कातर डहडहइ । विध लहलहइ,