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( ४५ ) २५ (पुनर्वर्णकान्तरं लंकेश ) रावणस्य ।। २ ॥ पहिलङ त्रिकूट पर्वतनी विसमाई, पाखलि (अनी) समुद्रनी खाई । लंका नगरी पाखलि गढ़, अति सदृद्ध । श्रोलगइ निन्नाणवइ कोडि राक्षस ना कुल, बलि करि अतुल । बांधव कुंभकरण विभीषण जिसा, वेटा मेघनाद, इद्रजित् जिसा । बहिनी असाली सूर्पणखा जिसी, रावणनइ दस मस्तक, वीस भुज, ए वात साभली कुणहइ इसी। लाधउ ईश्वर नउ वर, वाउ बुहारइ घरु । मेघ करइ छाटणउ, देवागणा करइ ऊगटगुं। यम देवता' पाणी वहइ, सूर्य देवता रसोई रहइ। ब्रह्मा वेद वखाणइ, इन्द्राणी केस ताणइ । गंगा यमुना चमर ढालइ, नवदुर्गा आरती उतारइ । विश्वकर्मा सूत्रहारूं करावह, विश्वामित्र श्राभरण घटावइ । मगल पडिउ क्षेत्र नीत्र परिवारइ, छइ ऋतु आपापणी अोलग संचारइ । देवता मिलि प्रागलि नाटक माडइ, विधात्रा कोद्रवा खाडइ । धनद भडार भरइ, रावण इस्यउ राज करइ । सू० मु०
२६ रावण--(३) लंका राजधानी, त्रिकूट दुर्ग, जीणइ मृत्यु बाधी पातालि पालिउ, नवग्रह खाट तगइ पाइयइ बाधा। वाउ देवता अागणउ बूहारइ, चउरासी मेघ छडा छावडा दिइ । वनस्पति फूल पगरि भरइ, जमराउ भइसा रूपि पाणी वहइ । सातइ समुद्र स्नान करावइ, सात मातर आरती उतारई । विश्वकर्मा शृगार करावइ, शेषनाग राजछत्र धरइ । गंगा यमुना चामर ढालई, छइ रितु पुष्प पूरइ । सरस्वती वीणा वायह, तुंबर गीति गायइं। रंभा तिलोत्तमा नाच, नारद ताल धरई । श्रादित्य रसोई करइ, चंद्रघडी २ अमृत झरइ । मंगल महिषी दोहइ, बुद्ध पारीसउ दिखाड़इ। वृहस्पति घडियारडं वायइ । शुक्र मत्री बहसइ, शनैश्चर पूठि पग देई खाट बहसह । १. ममहप (महमहण =) २. अपरावर ३.'थटावर (घदावर)।