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१६ महाराजाधिराज (१६) जीह रायतणी याज्ञा पंचाल देश स्वामी मस्तकि वहइ । नेपाल देश स्वामी, द्वारि रहिउ, प्रासाद लहइ । मलया देश स्वामो पाहुड पाठवई । द्रविड़ देश त्वामी वाज धयक अोलगइ। सिन्धु देश स्वामी पडपडी दिइ । कछ देश त्वामी दिवसोदव नगइ श्रोलगइ । गउड देश० कोठारि योलगइ ।। मरहठ देश० वज्र पजरि खडहडइ । जालधर देश० पग पखालइ । सोरठीउ राजा अाठील प्रास्फालइ । केई गोतिहरइ तडफडइ, केई लोह खंडे खडावडई। केई टाँति श्रागुली लेई अोलगइ, केइ स्कधि कुठार घाति अोलगइ । कि बहुना जीणइ सीमाडा सवे वस कीधा। गढ सवे ढालिया, रिपु सवि निर्धाटिया । समुद्र पर्यंत आजा पाठवो, अनेकि परि प्रजा सुखिणी कीघो । इण परि राजाधिराज राज्य करइ । ५६ । ( स० )
१७ अहंकारी राजा (१) अट्कारी कहवा छई
अटाला, अणियाला, पटाला, हठाला, मुछाला, मामला, करडाला, मरडाला, मछराला, मतवाला, मलपता, मरड़ता, मसलता, आखड़ता, अडता, आपडता, पडता, पाडता, पकडता, अत्रीहता' बलवता, बोलता, बुद्धिवंता, रूपाला, रंगीला, रसीला, रढीला, रेखाला, रतीला, रिद्धाला, सूरा, पूरा, छयल, छबीला, एइवा गुमानी राजा। ।
श्रोष्ट युगल फुरकावतउ, वचन विन्यासि खलतउ । भीषणाकार मुख करतउ, आरक्त लोचन धरतउ॥
___ इस्यु राजा कुप्पउ ।। पु० १८ कुपित राजा (१) .
कृटिल भ्रकुटि ताडी, चपेटा ऊपाडी। २ प्रतिहन्ता
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