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विवेक नारायण, परनारी सहोदर,' भरै अनेक ना उदर ।
पराक्रमवंत, दानवंत |
सत्यवंत, सोमवंत । याचक जन कामधेनु,
एवं विध राजान ॥ चि०
१४ राजा (१४)
दान वीर, सग्राम घीर 1 वैरी कुल खंडन, निजकुल मंडन । सत्यवाच अविचल, अति गाढो कल | संग्रामे स्थिर, प्रतापै युधिष्ठिर ।
पर राष्ट्र इंदप सल्ल,
बीडी चयरागर, गुणं रत्न सागर । साहरण समुद्र, दान खडै निर्जित दखि । कप्पूर धारा प्रवाह, अति स्वोछाह । सेवक जन क्ल्प वृक्ष, अति दच्छ । विचक्षण, छत्रीस लक्षण । याचकजन चिंतामणि, राजा मडल चूडामणि । प्रतापै दिनेश्वर, गाढो मलवेसर ।
इसौ जित शत्रु नरेश्वर ॥ चिन्
१५ राजा शरीर वर्णन (१५)
राजा कर्ण, गौर वर्ण, लंब कर्ण ।
विशाल नेत्र, फूल गात्र ।
उपराही रोमराय, हीएं श्रीवत्स, पाय पद्म, हस्त चक्र
एक अखंड प्रताप, ऊंचो लक्ष |
कटि लक, मूल वक
इति शरीरवर्णनम् ( चि० )
* सेवक जन वत्सल । इस प्रति में ऊपर लिसे प्रथम चितौड़ की प्रति के अत में यह शरीर वर्णन भी लिखा है ।