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________________ परमात्मा की सेवा निमित्तकारण है । इसी प्रकार चरम आवर्त, चरमकरण, भवपरिणतिपरिपाक, दोप-निवारण, सम्यग्दृष्टि की प्राप्ति आदि कार्य (फल) भी कारण की अपेक्षा रखते है। । दूसरी तरह से देखे तो अभय, अद्वेप और अखेद ये तीन परमात्म-सेवा रूप कार्य के लिए अनन्तरकारण है और पापनाशक साधु से परिचय, चित्तवृत्ति या चेतना मे से अशुभ (पाप) कर्मों का ह्रास, तथा आध्यात्मिक ग्रन्थो के श्रवण-मननपूर्वक सयुक्तिक परिशीलन आदि परम्पराकारण है । · सौ वात की एक वात है-परमात्मसेवा के योग्य बने हुए आत्मारूप मुख्य उपादानकारण का तथा अभय, अद्वेष एव अखेदरूप सहकारी उपादान कारणो का कार्य से ठीक पहले क्षण मे होना अनिवार्य है । अगर उपादान कारण जागृत होगा तो पूर्वोक्त निमित्त स्वत उपस्थित हो जायेंगे। ___ शास्त्रो मे वर्णन आता है कि राजा प्रदेशी एक घोर नास्तिक था । वह धर्म के प्रति अश्रद्धालु व धार्मिक पुरुषो के प्रति घृणा करता था । पर जब केशीकुमार श्रमण के सान्निध्य मे आया तो उसकी दृष्टि में अचानक परिवर्तन कैसे हो गया ? जो व्यक्ति अत्यन्त क्रूर और कठोर था, वह अत्यन्त कोमल कैसे बन गया? यह सब कुछ उपादान के परिवर्तन से हुआ। राजा प्रदेशी का उपादान प्रसुप्त पड़ा था, केशीकुमार श्रमण का निमित्त मिलते ही वह जागृत हो गया। इतना जागृत कि उसकी रानी ने धर्मसाधना मे सग्लन राजा को विप दे दिया, तब भी वह शान्त बना रहा। ऐसा परिवर्तन उसकी निजशक्ति-उपादान का था। अर्जुनमालाकार प्रतिदिन सात व्यक्तियो की हत्या करने वाला महापापी बना हुआ था, कोई भी, यहाँ तक कि राजगृही का राजा भी उसे पकडने का साहस नहीं कर सका। उसी अर्जुनमाली को महावीर के दर्शनार्थ जाते हुए राजगृही के निर्भीक थमणोपामक सुदर्शन का निमित्त मिला तो वह एकदम नम्र एवं दयालु बन गया। अत सुदर्शन का निमित्त अवश्य है, लेकिन अर्जुन का उपादान शुद्ध न हुआ होता तो सुदर्शन '(निमित्त) क्या कर सकता था? भगवान महावीर का निमित्त गौतम को भी गिला चौर गौशालक को भी। लेकिन गौशालक छह वर्ष तक उनके
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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