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________________ परमात्मा की सेवा : तव उसकी जिज्ञासा आत्मा के अपने असली गुण=ज्ञान को, जो सोया हुआ है, - जगाने की होती है। वह नाना भिव्यक्ति मे महानिमित्त, ज्ञान के स्रोत आध्या" त्मिक ग्रथो को सुनने, उन पर मनन-चिन्तन करने और विविध नयो और । हेतुओ या उपादानादि कारणो से उसका परिशीलन करके अधिकाधिक हृदयगम " करने की होती है । वह ज्ञान भी उसका वन्ध्य नहीं होता, वह आचरण के ___ रूप में उसे क्रियान्वित करके आध्यात्मिक प्रगति के नये-नये द्वार खोलता मुई रहता है। 4 . आध्यात्मिक ग्रन्थो के श्रवणमनन-पूर्वक परिशीलन पर से साधक की आध्यात्मिक प्रगति का पता लग जाता है । जिस साधक मे आध्यात्मिक विकास अधिक होगा, उसकी रुचि स्वाभाविकरूप से आध्यात्मिक ग्रन्थो के श्रवण और मनन द्वारा उनकी गहराई में डूब जाने और उन ग्रन्थो मे विहित बातो का S अपनी आत्मा के साथ तालमेल विठाने की होगी। वह उन आध्यामिक ग्रन्थो की गहराई में दुबकी लगा कर ज्ञानरत्नो को खोज कर निकाल लेगा, आत्मा मे सुषुप्त शक्तियोरुपी मुक्ताओ को प्राप्त कर लेगा , आत्मा में निहित अनन्त ज्ञानादिगुणो की निधि को हस्तगत कर लेगा। आध्यात्मिक ग्रन्यो के परिशीलन (वार-वार के अभ्यास) से उसमे हेय-ज्ञेय-उपादेय का विवेक आ जायगा । कर्म, शरीर, आत्मा, पुण्य, पाप, धर्म, अधर्म, निर्जरा, वध, मोक्ष, स्वभाव-परभाव, रागद्वेप कपाय आदि परपरिणतियो का आत्मा पर प्रभाव अप्रभाव, आत्मा का स्वरूप क्या है ? वह स्वय अपने कर्मों का कर्ता-हर्ता है जए या और कोई महासत्ता है ? मन, वाणी, इन्द्रिय, काया आदि का आत्मा के म साथ क्या सम्बन्ध है ? ये आत्मा को कैसे गुलाम बना लेते हैं ? इनकी दासता मे ना कैसे मुक्ति हो सकती है ? इत्यादि अनेक वातो के सम्बन्ध मे उसका ज्ञान जा सिद्धान्त सम्मत, परिपक्व और सम्यक् हो जायगा। जीवन और जगत् की धता अटपटी गुत्थियो, मानसिक उलझनों, चिन्ताओ, भयो, पूर्वाग्रहो झूठे आग्रहो या आदि से उसका मानस मुक्त हो कर शान्ति, समता, सहिष्णुता, निष्पक्षता, धीरता, एकाग्रता आदि से युक्त हो जायगा । नि सन्देह आध्यात्मिक ग्रन्थो शि का स्वाध्याय वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्म कथा से अनुहोता है। प्राणिन हो तो मानवजीवन का कायापलट हो सकता है, अपने खोये हुए
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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