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________________ अध्यात्म-दन पसमयता नति-ध नजानी या मति में नान -- निमन बांधारभूत बनाया, परन्तु श्रीआनकानजी उन दिन नि : । न मनोय है कि मैं वय बना दिव्यज्ञान मा दियो समान, कन्नु उस समय उनकी उपलधि न होने पर नीना आधार-... मान्मथान के निर, नाग के अन्तिम गाणन :--- काललब्धि लही पंथ निहाजरे, ए आमा अवलम्ब । ए जन जोवे रे जिनजो जागजो रे, आनन्दघन-मत अन्त्र पथड़ो॥६॥ अचं यथार्थ (समावरमगतारप) पुरषाचं प्रते-करते पाल परिपश्य (नमय पक जाने) होने पर तयारूप आत्मलधि (आत्मक्ति) प्राप्त करके मारका (परमात्ना का) पथ देख मकू गा, यह मागा (प्रतीक्षा) ही मेरे लिए अंछ अवलम्बन है । हे वीतरागप्रभो ! इसी जागा के आधार पर मेरे सगेणा व्यत्ति नो रहा है । इसे ही आप आनन्दघन (नच्चिदानन्दरप) के पय का मानवृक्ष या सार समझना। भाप्य काललब्धि को प्रतीक्षा · जीने का प्रप्त आधार श्रीआनन्दघनजी आपावादी (Optimist) है, ३ जनदर्शन की रगो को छूने हए कहते है, जिसमें तन-मन-प्राणं में परमात्मपत्र-मोक्षपथ पाने की तीव्रता है, जो अहनिंग म्वभावरमणम्वरुप मान-वर्णन-चारित्र मे पुरपार्थ करता है, उने एक न एक दिन परमात्मपथ के वान हो पर हते हैं, उनका वह पुम्पार्थ, वह तीन तमन्ना खाली नही जानी, पर नाध्य को उस जमा की प्रतीक्षा करना, उन अवसर के आने क य खना जरूरी है। - खेत मे बीज बोते ही किमान को उनका फल नहीं मिल जाता, उने काफी प्रतीक्षा करनी पड़ती है, धैर्य के माय फ्मल पकने तक इन्तजार करनी पडती है, तव तक उमे उत्साहपूर्वक गोडाई, मिचाई, और सुरक्षा करनी होती है। तभी उसे उमका सुन्दर फल मिलता है। इसी प्रकार परमात्मपथ के दर्शन के लिए भी स्वभावरमणरूप पुरुपार्थ द्वारा आत्मशक्ति प्राप्त होने तक प्रतीक्षा
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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