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प्रकाशादाय अध्यात्म योगी सत मानन्द घनजी द्वारा रचित नौवीगी (गतु विनिरि) आध्यात्मिक जगत् में अत्यन्त प्रसिद्ध है। इसमे दर्शन, धर्म, पूजा, भति, धर्मक्रिया, वात्मा के मर्वोच्च गुणो मी भाराधना, वात्मिक चोरता, परमात्मका दर्शन, मन आदि की माधना इत्यादि बाध्यात्मिक विषयों पर नौगोम तीर्थकरो की स्तुति के माध्यम से मरस, सरल, भक्तिम प्रधान गय पदो की सरचना है। इस पर अनेक विनारको एव साधको नेल्यं, भावार्य, विवेचन मादि प्रस्तुत किये हैं, फिन्तु विस्तृत ढग से पदो मे गिरिन तात्तयों को विविध पहलुओं से खोल सके. ऐमी व्याख्या में परिपूर्ण भाष्य हिन्दी भाषा में अब तक प्रकाशित नही हुआ था। हमे प्रसन्नता है कि हमारी प्रागन नमिति में हिंदी मापा मे अध्यात्मदर्शन के नाम से पदमग्न-भाध्य प्रमाणित हुआ है। हम भाष्यकार हैं-प्रवुद्ध विचारक विद्वद्वयं प० मुनि श्रोनेमिचन्दजी महाराज। इसके मार्गनिर्देशक तो गप्टसत आचायश्रीआनन्दपिजी म० रहे, किन्तु मर्वाधिक मम्प्रेरक रहे हैं-तपस्वीरल श्रीमगनमुनिजी महागज, जिनगी मतत प्रेरणा व श्रीकुन्दन पिजी म० को सहस्रेरणा और सर्वाधिक महयोग से यह विशालकाय ग्रन्थराज प्रकाशित हो सका है। इमी प्रकार हम राष्टमर उपाध्याय श्रीअमरमुनिजी म के प्रति अत्यन्त पता है, जिन्होंने अपना आशीर्वचन लिख कर हमे उपकृत किया है, साय हो विद्वद्वर्य श्रीचन्दनमुनित्री म (माहित्य निकाय) के भी हम अत्यन्त आभारी है कि उन्होंने इस अन्य राज पर अत्यन्त भाववाही मुन्दर प्रस्तावना लिख कर इसका समुचित मूल्याकन किया है। श्रीसुमेरमुनिजी एव विनोदमुनिजी ने इस भाप्य को याद्योपान्त अनेक बार पटा, और इसमें उचित सुझाव, सशोधन एव रिवद्धन सूचित करने की महती कृपा की है। पण्डितरत्न विजयमुनिजी मास्त्री एव कलमकलाघर मुनि समदर्शीजी का भी इसमे अपूर्व सहयोग मिला है, एतदर्थ हम इनके प्रति भी कृतज्ञ हैं। __अन्त मे, जिन-जिन महानुभावो का प्रत्यक्ष या परोक्षरूप ने इस ग्रन्धराज मे सहयोग मिला है, तथा जिन-जिन महानुभावो ने उदारतापूर्वक इस ग्रन्धराज के प्रकाशन मे अर्थसहयोग दिया है, उन सबके प्रति हम हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। मुज्ञ सुधीजन इसे पढ़ कर आध्यात्मिक लाभ उठाएंगे तो हम अपना प्रयास सार्थक समझेंगे। -मत्री, विश्ववात्सल्य प्रकाशन समिति, मागरा।