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आत्मा के सर्वोच्च गुणो की आराधना
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(१) आत्मा अपने सर्व-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावो को अपने सम्पूर्ण ज्ञान से जान-देख सकता है। इसमे कोई शका नहीं है, क्योकि स्वय तो स्वय को जानता ही है (आत्मा का अस्तित्व अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के आधार पर ही है। (२) परन्तु आत्मा मे जैसे अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव हैं, वैसे ही दूसरे पदार्थो के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव नहीं हैं, यह भी मानना पडेगा। अर्थात किसी एक प्रस्तुत आत्मा के सिवाय जगत् मे जितने जडचेतन अन्य पदार्थ हैं, उनके जो द्रव्यादि चारो हैं, उन सबका नास्तित्व (अभाव) भी आत्मा मे विद्यमान है। तभी वह आत्मा दूसरे पदार्थों से अलग होता है। (३) अगर ऐसा न हो तो वह आत्मा और दूसरे पदार्थ एकाकार हो जाय, सारा जगत् एकरूप ही प्रतीत हो, कोई भी पदार्थ अलग-अलग प्रतिभासित ही न हो। किन्तु पदार्थ अलग-अलग होते हैं, उसका कारण हैप्रत्येक पदार्थ अपने-अपने द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव के अस्तित्व के कारण उस-उस द्रव्यादिरूप है, साथ ही दूसरे पदार्थों के द्रव्यादि चारो उसमे नही है, उन सबका नास्तित्व उसमे है। इसलिए प्रत्येक पदार्थ के पृथक्-पृथक् होने की प्रतीति हो हो जाती है । (४) जैसे स्वद्रव्य मे पर के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव नहीं है, वैसे ही स्वद्रव्य के अपने एक प्रकार के द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव मे दूसरे प्रकार के द्रव्यादिचारो नही हैं, उनका उसमे अभाव होता है। उदाहरणार्थ-एक आत्मा नारकभाव मे था, तब उसमे जो द्रव्यादि चारो उस समय वर्तमानरूप मे थे, वे उस आत्मा के मानवभव मे आज वर्तमानरूप मे नही हैं, अपितु भूतकालीन पर्याय रूप हैं। वर्तमानरूप मे उन पर्यायो का अभाव है। उसी प्रकार वर्तमान पर्याय उस समय इस आत्मा मे भविष्य के पर्याय रूप मे थे, पर वर्तमानरूप मे नही थे । अर्थात एक ही पदार्थ के द्रव्य, क्षेत्र, काल भावो मे भी परस्पर स्बद्र व्यादि का अस्तित्व और परद्रव्यादि का नास्तित्व होता है। (५) किसी ज्ञानादि एक गुण के स्वपर्याय दूसरे सुखादिगुणो की अपेक्षा से परपर्याय हैं। तथा एक-एक गुण के अनन्त-अनन्त पर्याय होते हैं, इस दृष्टि से एक ही आत्मा मे एक-एक गुण के प्रत्येक पर्याय मे स्वपर्यायो का अस्तित्व और परपर्यायो का नास्तित्व होता है। (६) यो अस्तित्व और नास्तित्व इन दोनो ही पर्यायो का अस्तित्व प्रत्येक पदार्थ मे होता है। (७) इमलिए जो आत्मा अपने पर्यायो का अस्तित्व जानता है, उसी प्रकार वह अपने मे रहे हुए परपर्यायो के न स्तित्व के अस्तित्व को भी जानता है। अर्थात वह यह भी जानता है कि