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________________ ४८८ अध्यात्म-दर्शन भरे उपालम्भ और मोहक एव भ्रामक शब्द कहलाए जाने पर भी श्रीनेमिनाथ स्वामी वापिस नहीं लौटते हैं, तब राजीमती स्वय ही भगवान नेमिनायस्वामी के मार्ग का अनुसरण करके अन्तर्वृत्ति मे स्थिर हो जाती है । ___यहाँ यह शका होनी स्वाभाविक है कि पहले की स्तुतियो मे और इस स्तुति से आगे की स्तुतियो मे किसी भी स्थल पर श्रीआनन्दघनजी ने दूसरे के मुंह मे स्तुति नहीं कराई तो फिर यहां राजीमती के मुख से स्तुति क्यो कराई गई ? इसके समाधान में हम यो कह सकते हैं कि मुमुक्षु भव्यात्मा अथवा श्रीआनन्दघनजी ने स्वय ने ही राजीमती के बहाने से परमात्मा नेमिनाथ के चरित्र का स्मरण करने के लिए ही ऐसा किया है। इन्ही पूर्वोक्त गूढ अर्यों के प्रकाश में इस स्तुति की विभिन्न गाथाओ का अर्थ समझने का प्रयत्न करना चाहिए । राजीमती-बहिर्मुखी चित्तवृत्ति द्वारा स्थितप्रज्ञ आत्मा रूप नेमिनाय को प्रार्थना यह सारी स्तुति स्तुतिकार ने उग्रसेनपुत्री राजीमती के मुख से करवाई है। दसरे तीर्थकगे की अपेक्षा नेमिनाथप्रभु का चरित्र अदभत है। वे आजीवन बालब्रह्मचारी के रूप में ही रहे हैं, किन्तु श्रीकृष्ण जी की प्रेरणा से, विवाह के लिए उन्होंने मौन सम्मति दे दी । लेकिन जब वे राजीमती के साथ विवाह करने के लिए वरात ले कर स्वयं रथारूढ हो कर श्वसुरगृह की ओर प्रस्थान करते हैं, तो रास्ते में ही उन्होने बरातियो को मांसभोज देने के लिए एक वाड़े मे बद पशुपक्षियो को आर्तनाद करते हुए देखे । नेमिनाथ उनकी पुकार को समझ गए और उन सव भद्रप्राणियो को बन्धनमुक्त करवा दिये। उन्हे यह खेद हुआ कि मेरे विवाह के निमित्त से इन सब निर्दोप प्राणियो की हत्या होती, अत वे इस विवाह से ही विरक्त हो कर विवाह किये बिना ही वापिस लौटने लगे । सारे वरातियो मे खलबली मच गई। राजीमती ने जब अपने भावी पति ( वरराज नेमिनाय ) को विवाह किये बिना ही वापिस लौटते देखा तो उसके मन में भूकम्प का-सा झटका लगा । मोहवश एक बार तो वह मूच्छित हो गई. किन्तु फिर होश मे आ कर अपने साथ किये हुए सगाई (वाग्दान) सम्बन्ध को याद दिला कर वह नेमिनाथ मे पुकार करने लगी । इस स्तुति की १३ गाथाओ तक स्तुतिकार ने सती राजीमती के मुत्र से जो पुकार ( प्रार्थना )
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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