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वीतराग परमात्मा के चरण-उपासक
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वह ज्ञान (सम्यक्वोध) से रहित हो करससार मे दुर्गति मे, परिभ्रमण करता है। इसलिए प्रत्येक वीतराग-चरण-उपासक को इन छह अंगो की विधिवत् आराधना करनी चाहिए।
सूत्रादि षडग क्या हैं ? उनकी विशेषता क्या है ? जैनदर्शन को समझने के लिए मूलसूत्रो अगोपागो का पठन-पाठन बहुत ही आवश्यक है। परन्तु मूलसूत्र प्राकृत अर्धमागधी भाषा में है। बिना टीका आदि के वे दुरूह आगम समझ मे नही आ सकते । इसलिए समयपुरुष के ये छहो अंग अत्यन्त उपयोगी हैं, स्वपरहितकारी हैं, और ज्ञानगुण के विकास के लिए प्रवल निमित्त हैं। यद्यपि जैनतत्व-ज्ञान का विपुल अमूल्य साहित्यजिसे ' पूर्व' कहते हैं, कालक्रम से अनुपलब्ध हो गया है, फिर भी जितना सूत्रादि साहित्य उपलब्ध है, उसी का उपयोग किया जाय तो बहुत ज्ञान-लाभ हो सकता है । अव हम क्रमश इन छहो की सक्षेप में परिभाषा दे रहे हैंचूणि-पूर्वधरो द्वारा अर्धमागधी मे किये हुए कठिन प्रकीर्णक पदो के अर्थ,
भावार्थ।
भाष्य-चौदह पूर्वधरो या गणधरो द्वारा रवित मूलसूत्रो पर अर्धमागधी या वर्तमान प्रचलित भाषामो में सम्पूर्ण पद का विस्तृत अर्थ सूत्र-तीर्थकरो के गणधरो द्वारा रचित मूल सूत्र । ११ अग वर्तमान मे उपलब्ध हैं, जो श्रीसुधर्मास्वामी द्वारा रचित हैं। नियुक्ति - व्युत्पत्ति के द्वारा शब्दो का अर्थ करना। वह प्राय अर्ध-मागधी भापा में होती है। वृत्ति-सूत्र पर सस्कृत टीका, चाहे जिस पूर्वाचार्य द्वारा लिखित हो, बहुत ही प्रकाश डालती है- मूलसूत्रोक्त बातो पर। परम्परागत अनुमत्र-गुरुशिष्यपरम्रा से प्राप्त अनुभवज्ञान, धारणामो का
ज्ञान।
__ समयपुरुष के ये ६ अंग हैं । अगर जैनदर्शन की आराधना करनी हो तो उपर्युक्त छही अगो को समझना, पठन-पाठन, अध्ययन-मनन करना और उनका आदरपूर्वक अनुसरण करना चाहिए । छही अग अपने-अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण हैं, उपयोगी हैं । आध्यात्मिक विज्ञान के लिए इनसे बढकर और कोई धर्मशास्त्र