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________________ वीतराग परमात्मा के चरण-उपासक ४५७ दृष्टियुक्त तत्त्वज्ञान =समयपुरुष अर्थ गृहीत करने पर भी यह अर्थ घटित हो सकता है जिनतत्त्व ज्ञान अनरूप या समयपुरुषरूप इस कल्पवृक्ष मे समस्त प्रमाणो और नयो का समावेश है, सभी द्रव्यो या पदार्थों का सामान्य-विशेषरूप से द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावानुसार वर्णन समाविष्ट है, क्योकि सभी प्रमाणो और नयों से इसमें आत्मादि तत्त्वो का विवेचन है, सभी पदार्थों का सामान्य, विशेष आदि समी दृष्टियो से कथन है, इसलिए कल्पवृक्ष की तरह यह समस्त पदार्थों के अस्तित्त्व का भडार है। इस दृष्टि से इसे कल्पवृक्ष कहने मे कोई मत्युक्ति नही है। वृक्ष का सर्वश्रेष्ठ या सर्वोपरि आधार मूल [पर होता है । मूल न हो तो कोई भी वृक्ष टिक नही सकता। मून से रहित वृक्ष एक ही हवा के झोके से धराशायी हो जाता है। मगर मूल हो तो ऊपर के पत्ते आदि झड जाते हैं या डालियां काट ली जाती हैं, तो भी एक दिन वह वृक्ष फलदाता बन जाता है। अतः यहाँ मूलभूत वस्तु आत्मा को दोनो दर्शन मानते हैं, दोनो दर्शनो के आत्मवादी होने से दोनो को जिनतत्त्वज्ञान या वीतरागरूपी कल्पवृक्ष के दो मूल उचित ही कहा है। समस्त दर्शनो का मूल आधार आत्मा है, और आत्मा के अस्तित्त्व को माने विना ये दोनो दर्शन आगे नहीं चलते। इस कारण जिनतत्त्वज्ञानरूपी कल्पवृक्ष को स्थायी और मजबूत रखने के लिए दोनो दर्शन वक्ष के मूल की तरह खडे हैं। दूसरे अर्थ की दृष्टि से सोचें तो साख्यदर्शन और योगदर्शन को वीतराग [जनतत्त्वज्ञान या समयपुरुष के कल्पवृक्ष के समान दो पैर कहे हैं। वीत. राग के तत्त्व-ज्ञान को मजबूती से टिकाए रखने के लिए साख्य और योग दोनों दो पैर का काम देते हैं। मनुष्य के पैर हो तो वह स्थिरता एव मजबूती मे खड़ा रह सकता है, इसी प्रकार वीतराग [समय] पुरुष या वीतराग तत्त्वज्ञान के दोनो पैरो को मजबूत और स्थिर रखने के लिए ये दोनो दर्शन हैं। आत्मा को न मानने वालो को आत्मा का अस्तित्त्व समझाने का काम करके ये दोनो दर्शन वीतराग-परमात्मा के या वीरागतत्त्वज्ञान के पैर मजबूत बनाते हैं, उसे स्थिर रखने का काम बखूबी करते हैं। मात्मा के अस्तित्त्व के विना कोई भी आत्मवादी-दर्शन खडा ही नही हो सकता, न खडा रह सकता है। इसलिए
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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