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________________ अध्यात्म-दर्शन मानने पर जो कुछ भी प्रवृत्ति अविद्यानाशादि के लिए करेंगे, उसका फल तो आपको मिलेगा नही, इस दृष्टि से १ कृत (फल) का नाश होगा और अकृत का आगम (दोप) होगा । आत्मा एकान्त नित्य एकरूप रहेगी, तो शुभाशुभ जो कर्म वेदान्ती करेगा, उसका तो नाश हो जाएगा, और व्रत नियमादि शुद्ध करें य नही करते हुए भी उनका फल मिला करेगा। यानी ऐसी स्थिति में कृतकर्म का फल नष्ट हो जाएगा और अकृतकर्म का फल मिलने लगेगा। अथवा अविद्या का नाश या ही, ब्रह्म ही अकेला था। वह आज भी है। यद्यिा का नाशरूप फल तो विधिशेषत्व किए रिना भी था। इस तरह किये हुए पुरुपार्थ का नाश और नही करे हुए, की प्राप्ति ये दूपण अवश्यमेव आएंगे। आत्मा को नित्य मानने वाले की नजरो मे मनुष्य मनुष्य के बीच मे जो आज राई और पर्वत का-सा अन्तर है, वह क्यो नहीं आता ? क्या ये धनवान-गरीब मदबुद्धि-तीनवुद्धि आदि भेद नित्य आत्मा में हो सकते हैं परन्तु व्यवहार में दोनो ही हैं। अपनी बुद्धि मे इस निष्पक्ष विचार का गज दान कर देखें तो तुरन्त समस्या हल सकती है। अत. एकान्त नित्य आत्मतत्व का विचार दिमाग में जचता ही नहीं है, इसीलिए एभो | मैं आपसे निर्विवाद सत्य शुद्ध आत्मतत्त्व जानना चाहता हूँ। आत्मा क्षणिकवाद की दृष्टि मे क्षणिकमतवादी वौद्धमतानुरागी लोग कहते हैं-आत्मा क्षणविध्वसी है, प्रतिक्षण उत्पन्न-विनष्ट होता रहता है । प्रत्येक का-आत्मा सदा एक समान नहीं रहता, वह प्रतिक्षण बदलता रहता है। पहले क्षण मे जो आत्मा था, वह दूसरे क्षण नहीं रहता। पहले क्षण जो आत्मा विचार करता है, वह अलग और दूसरे क्षण विचार करता है, वह आत्मा अलग है। पृयक प्रयक विचार करने वाला प्रतिक्षण बदलता रहता है। बौद्ध विज्ञानम्कन्ध को आत्मा कहते है , उमसे ज्ञान होता है । अर्थात् अह [मैं ) का ज्ञान जिससे हाता है, वह स्कन्ध और दूसरे स्कन्ध क्षण-क्षण मे बदलते हैं, क्योकि ज्ञान तो क्षण-क्षण मे बदलता १. कृतनाश का अर्थ है -पूर्ण कारण-सामग्री मिलने पर भी कार्योत्पत्ति न होना तथा अकृतागम का अर्थ है-कारण के विना ही कार्य उत्पत्ति होना।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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