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________________ ४३० अध्यात्म-दर्शन कोई दार्शनिक (अतवादी) यो मानते हैं-पौद्गलिक जड (चैतन्यरहित) पदार्य और चेतन (चैतन्यशक्ति सहित) ये दोनो स्थायर (पृथ्वोकायादि और जगम (चलने फिग्ने त्रसकायादि) के समान हैं, सबमें एक ही सात्मा है। इन सबमे कोई अन्तर नहीं है । फिन्तु ऐसा मानने पर मुख मोर दुफामांकर्य दोष आएगा, (यानी एक दूसरे फा सुक्द.ख एक दूसरे का भोगने का प्रसंग आएगा । अगर इस बात पठडे दिल से विचार करेंगे तो हमारी बात मे सत्यता की परीक्षा कर सकेंगे ॥३॥ एक दार्शनिक (अतवादी देदान्नी) कहता है-आत्मतत्व सदा एकान्त (कूटस्य) नित्य है। इस प्रकार नित्यात्म वादी अपने माने हए आत्मदर्शन में लीन (ओतप्रोत) रहता है। परन्तु अपने कृत (किये हुए कर्म के फल) का विनाश और अकृत (नहीं किये हुए कर्मों का आगम (फल) मिलने लगेगा, इस दोष को मान्यता वाला मदबुद्धि नहीं देखता ॥४॥ सौगत (बौद्ध मत रागी वादी कहते हैं-यह (वेहम्यित) आत्मा क्षणिक है क्षणभर मे उत्पन्न और विनष्ट होता है। ऐसा समझ लो। फिन्तु ऐसा मानने पर मात्मा मे वन्ध-मोक्ष (कर्मपुद्गलों के साथ आत्मा का बन्धन एव कर्मपद्गलो से आत्मा का छुटकारा) तया सुख-दुख आत्मा मे घटित नहीं हो सकते । कम से काम अपने दिल मे यह विचार तो कर लों॥५॥ कुछ भौतिकवादी कहते हैं-पृथ्वी, जल, तेज और वायु इन चार मूल भूतो (पदार्थो) के सिवाय बात्मतत्त्व का पृथक् कोई अस्तित्व नहीं है । अन्धा अगर रास्ते में पड़ी हुई गाड़ी को आंखों से नहीं देख सकता तो इसमें गाडी वेचारी क्या करे ? गाड़ी का क्या दोष है ? |॥६॥ - भाष्य सांख्य और वेदान्त की दृष्टि मे आत्मा पूर्वगाथा मे श्रीआनन्दघनजी ने वीतराग परमात्मा के सामने आत्म तत्त्व कौन-सा है, जिसे आपने यथार्थ जाना ? इस प्रकार की जिज्ञासा प्रगट की है। उस युग मे आत्मा के बारे मे विभिन्न दार्शनिक अपना-अपना राग अलाप रहे थे, सभी एक दूसरे को मिथ्या और नास्तिक तक कह देते थे। ऐसे विवाद के घनान्धकार में श्रीआनन्दघनजी को रास्ता नहीं सूझ रहा था कि कौन-सा आत्मतत्त्व यथार्थ है, और वह परमात्मा के निकट ले जाता है, किसमे और कद मोक्ष जाने की योग्यता होती है ? इन शकाओ का समाधान पाने की दृष्टि से वे उस युग मे आत्मा के सम्बन्ध में प्रचलित मान्यताओ का सारा पुलदा प्रभु के सामने रख देते हैं । आचार्य सिद्धसेन दिवाकर अपनी द्वातिशत् द्वात्रिंशिका
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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