SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्म-दर्शन आगे नाचना गाना बजाना गगा रना उनके मित्र पर नो माग डालना न नयी सी भेंट नाना उनमा-मा माग रचना और इसका प्रचार-प्रसार करना गा रद यादव- माना कि करना, प्रबदा उनी निजय बोल र गन-गभर डाग मा चिन नाम-जीतन वयं का उनके गोरे गुणगान करने में मार ने गायन ने सम्यग्दशन-मान-नन्त्र वियर में कोई ग्राम परमान मात्र बाहा मन को ही नाना मन्चा माग गमग लोग भी वाह्य गगगग की भूलभुलैया मे ही अटक कर जाते हैं । परमाना माग का मार्ग दर्शन नर्ग 7 पाने । दूसरी दृष्टि से देगे लो बनमानयाद पाना र धर्मनारमार, मत, पापा दर्गन मामा के मार्ग को मिर्फ चमरे की न पुन आंत्री ने देखने का प्रयत्न करते है। वे प्रार म्यू ष्टि ही भगवान को वाना क्रियामओ या प्रवृत्तियो अथवा बाह्य व्यवहार व आचरण को देन पर उना मार्ग का निर्णय करते हैं। वे इन स्थूल आयो ने प्राय पही दंगा करने हैं कि हमारे पूजनीय आनध्यदेव गृहम्यावस्या में मे ग्नान करते थे? कैसी गाडी में बैठने थे ? उन्होंने विवाह किया या नहीं किया। उनके माता-पिता, भाई-वहन थे या नहीं? वे कौन थे, क्या थे? ये कैमे वस्त्र पहनने ये दीक्षा ली, तब कैसे ठाठवाठ से ली थी। यहां-यहां विहार किया. पिननी बाता तपन्याएँ की? उनका शिष्य-शिप्यानमुदाय दिनना याशिनने अनुमाची ये? केबलमान होने के बाद वे आहार करते थे या नहीं ? वै दम्य रनुते ये या नग्न रहते थे? वे दिनभर उपदेश आदि वाह्य क्रियाएं पाया करते थे? वे रत्नजटिन स्वर्णमय मिहासन या पट्ट पर बैठने थे या शिलापट्ट पर उनके पास देवता, इन्द्र आदि आते थे या नही ? आते थे तो उन पर छय करने , व नमर ढलाते थे या नहीं? वे अतिशयो ने यक्त थे पानही ? और ऐसी ही वाते चर्मचक्षुओ ने देखी जा सकती है। इस प्रकार चमडे की आंखो में इस स्यूलदर्गन को ही परमात्ममार्ग समझ कर मारा तसार भूला हुपा है । वह परमात्ममार्ग के वास्तविक तत्व या हार्द को नहीं समझ पाता। इसी प्रकार कई भ्यूल दृप्टि वाले लोग गाजा, सुलफा, भाग या शगव आदि नशैली चीजो का सेवन करवे परमात्मा के मार्ग को देखने की चेष्टा
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy