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________________ চান-টান के मार्ग में बाधा उन ५ मारह दृपो पर नियमनकारा द्वारा विजित (पगजिन) न हो र जनन गुणा यस मुन्य अ पार बन गर अपने नाम को मार्च को है. जयनित मैं सामादिन हो कर उनके गगे घुटने टेर देता है , नवना मन T' नगरी नाम हो सकता है भागमो में नया गान्व-दर्शन में समा मेरा गया है। आत्मा पोन्ययुक्त होने के पुरम २ लान ! TATE अपनी शक्ति को न पहिचान कर विभागे रे मनानामत गना, गादि दूपणो का गुलाम बन जाना है, पीरपटीन व निराम बन बरामद आगे पराजित हो गता है, तब वह परमात्मा के आग पुनार का है.-- 'पुरुष फिस्य मज्ञ नाम । मेग पुप नाम यदा में पॉम्यवान होरर जव विकारो मे अपनी पराजय देखता है, न मुझे रोमा नगता है कि मेरे लिए पुरुप शब्द शोभा नहीं देना । यद्यपि पुरष होते हुए भी मेरी दशा पुरपार्थहीन हो ही है, फिर भी आपने जिन मार्ग का पुग्पार्य किया, उस मार्ग के दान तोर गन्ना देखा होगा तो किसी दिन म गन्ने से जाने का दावा भी हो नरेगा। इनलिए प्रभो । मैं आपके पथ का अवलोकन करने को उद्यन हुआ, और प्राथमिक अवलोकन मे मुझे जो कुछ मालूम हुआ, उमे मैं आपके नामने विनम भाव से प्रस्तुत करता हूँ। __ जैनदर्शन की दृष्टि मे देखें तो काल, स्वभाव, नियति, कर्म और पुम्पार्थ इन पाचो कारणो का समवाय होने पर ही कोई कार्य बनता है। परन्तु इन पाचो कारणो मे पुम्पार्थ को भी विकाममार्ग में स्थान दिया गया है । वास्तव में देखा जाय तो शुभ या अशुभ कर्मों का बन्धन भी आत्मा के वैभाविक , १ अठारह दोष ये है-दानान्तराच, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्त राय, वीर्यान्तराय, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्ता, काम, (वेदोदय) अज्ञान, मिथ्यात्व, निद्रा, अविरति, राग और द्वेप। २ 'पुरिमा तुममेव तुम मित्त , पुरिसा अत्ताणमव ममभिजाणह , आचारागसूत्र
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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