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मनोविजय के लिए परमात्मा से प्रार्थना
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प्रभो ! ऐसे मन को कैसे वश मे करूँ ? कैसे उसे आप में एकाग्र करू ? यही मैं रह-रह कर विचार करता हूँ। अभी तो मैं और अधिक वर्णन करके मन की कहानी बताऊँगा। मैं सोचता था कि सामान्य साधको के काबू मे यह नही आता होगा, परन्तु यह तो विशिष्ट और उच्च साधको के भी काबू मे नही आता, इसी बात को धीआनन्दघनजी अगली गाया मे बताते हैं
आगम आगमधर ने हाये, नावे किण विध आंकु। किहां करणे जो हठ करी हटकु , तो व्यालतरणी पेरे वांकु , हो ।
कुन्यु० ॥ मनडु०॥४॥
अर्थ
नाथ ! यद्यपि पूर्व या चारागादि आगम-सूत्रग्रन्य वडे-बड़े आगमधरो (या पूर्वधारियों) के हाथ मे हैं, तथापि यह मन किसी भी तरह से उनके अंकुश मे नहीं आया । [पूर्वधारी या आगमधारी आगमावि सूत्र पढ़ कर बड़े आगमधर होते हैं, तथापि उन जैसो के हाथ मे किमी भी तरह से यह मन नहीं आता, इसे कैसे अंकुश मे लाऊँ ? अथवा मन की आक-याह किसी भी तरह नहीं मिलती यदि मैं तप-जप आदि के स्थान पर आग्रह (हठ) करके इसे जबरन धकेल देता हूं (या रोकता हूँ) [किमो समय हठ करके तान कर रखता हूँ] तो यह सर्प की तरह टेढा हो कर निकल जाता है (सॉप की तरह वक हो जाता है, उलटा फल देता है, ठिकाने नहीं आता), ऐसा यह मेरा मन है ।
भाष्य
आगमधरो के भी वश मे मन नहीं आता यद्यपि मन को वश मे करने के लिए आगमो=आचाराग आदि ११ अगो, औपपातिक आदि १२ उपागो, उत्तराध्ययन आदि ४ मूलसूत्रो, दशा तस्कन्ध आदि ४ छेदसूत्रो, इनसे भी आगे बढकर १४ पूों का अध्ययन आगमन मुनिवर एव आचार्यादि साधक करते है, ऐसे बहुश्रुत विद्वान् आगमो मे मन का अधिकार पढते हैं, उनके हाथ मे विविध आगम (प्रवचन) हैं, फिर भी यह मन उनके भी (दशपूर्वधारियो तक के मी) अकुश मे नही आता । आगमधर आगमो मे मन को वश मे करने के अनेक उपाय पढते हैं, विविध उपाय वे