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________________ ३३२ अध्यात्म-दान अधर्मो या अभावी का द्योतक काय है, उमा घाग, प्रत्यावान, या निव करना चाहिए, यह गायोक्त प्रतिषेध है । यानी (आत्मदृष्टि में) अगुवा कार्य करना और अमुक नहीं करना चाहिए, उस प्रकार के विभिनिरोध में उग अपेक्षावाद के कारण जरा भी विरोध नहीं दिखाई देता । पालिवान्यानाधक की कुणलदृष्टि विधि का म्वीकार करती है और निषेध का त्याग करनी है। उमे विधि-निषेध मे गृयवा-पृयका दृष्टिमिन्दुक ज्ञान के कारण जग भी उलझन नहीं होती। ___ आगमो मे भले ही अनेक पदार्यों, नन्चो या अनुयोगो का वर्णन ग निस्पण हो, लेकिन प्रत्येक का अन्तिम तात्पर्यार्थ-मतावापयार्ग आत्मा पदार्ग का मोक्ष (शाश्वत शान्ति, के लिए निरूपण करना है । इस दृष्टि से आगमो में दो प्रकार गे बोधनिम्पण हैं --- विधिवाक्य और निपंधवानय । जात्मा विमा. वदशा मे रह कर आत्मगुणवाधक तत्वों का ग्रहण करके अपना मूल-वस्य भूनी, जिससे वह शान्ति-म्वरुप गे वनित रही। राग-द्वैप, काम, नोप, लोग, मोह, माया आदि सब पुदगल'भावो की ओर ले जाने वाली किसानो को प्रनिषेध कहा जाता है, इन क्रियाओ का कर्मा आत्मा है, जो उन वैमानिक निगारो के कारण अशुद्ध बना हुआ है, इसी कारण वह योग-आत्मा या कपायात्मा के नाम से पुकारा जाता है। उन्ही क्रियाओ के कारण आत्मा को इम अगान्त - दुन. मय वातावरण में बारबार परिभ्रमण करना पड़ता है । जब यही लात्मा म्ववोध या सद्गुरु या आगम के बोध गे सगावदशा मे मा कर आत्मगुणगायक विधितत्व को ग्रहण करना है, तब यह गुद्धात्मा बनता है, जिनसे उमा मन्यदर्शन-ज्ञान-चारिन तथा वैराग्यादिभावो मे स्थिरता आती है। इसलिए आत्मा के दुरा और जणान्ति के कारण रूप प्रनिपेवक (बाधा याघाना) तत्वो को दूर करना-उन का त्याग करना और अन्त गुख तथा शान्ति के कारणरूप विधितन्व का पालन करने वा अपनाने के लिए तत्पर रहना, यही है शान्ति प्राप्त करने का राजमार्ग, जिम जागमो मे यत्र-तत्र वोध (उपदेण या प्रेरणा या आजा) के रूप में बताया है। जिन्हे पूर्वका न मे सपन-देव से ले कर भ महावीर तथा उनके सामाचिगो अयवा विश्व के समष्टि मतपुरुपो ने भी इनी रूप मे विधि मे शुद्ध आत्मपद या परमात्मपद ग्रहण किया है। न्यायशास्त्र में विधि यानी अन्वय और निषेध यानी व्यतिरेक का उपयोग किया
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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