SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमात्मा से शान्ति के सम्बन्ध मे समाधान । ३२५ पडेगी। सद्गुरु ही शान्नि का स्वरूप प्राप्त करा सकता है। इस कारण श्रीआनन्दघन जी ने योगाऽवत्रक गुरु के योग को शान्ति का स्थान बताया है । सद्गुरु का योग पाने के बाद सद्धर्मप्राप्ति के हेतु शुद्ध आलम्बन शान्ति के लिए आवश्यक है, इमी बात को अगली गाथा मे श्रीआनन्दघनजी वताते हैं - शुद्ध आलम्बन आदरे, तजी अवर जजाल रे। तामसी वृत्ति सवि परिहरे, भजे सात्त्विक साल रे ॥ शान्ति० ॥५॥ अर्थ शान्तिकाक्षी साधक अन्य सभी प्रपच-जाल (खटपट) या रागीद्वषी देव-गुरु का जाल छोड़ कर शुद्ध (शास्त्रोक्त) या आत्मस्वरूप के आलम्बनो को अपनाए । तथा क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, तप, दम, ईर्या, छल, स्वार्थ, इन्द्रियविषयासक्ति आदि समस्त तामसीवृत्तियो का त्याग करे और सात्त्विक ज्ञानयुक्त आनन्ददायी वृत्ति धारण करे । भाष्य सद्धर्मप्राप्ति के लिए शुद्ध आलम्बन शान्ति का कारण देव और गुर के योग के बाद सद्धर्मप्राप्ति के लिए क्रियाऽवचक योग वतलाया गया। क्रियावचकयोग मे पुष्ट और शुद्ध आलम्बन प्रहण करना चाहिए। प्रश्न होता है कि गुद्ध आलम्बन किसे कहा जाय ? जो आलम्बन शुद्ध स्वरूपलक्ष्यी, परमात्म लक्ष्मी या मोक्षलक्ष्यी हो, उसे ही शुद्ध आलम्बन कहा जा सकता है। जिस आलम्बन से साधक दुर्गतियो मे भटकता हो, जिससे । जीवन पतन की ओर जाता हो, अथवा जो आलम्बन मनुष्य को सदा परावलम्बी बनाए रखता हो, उम आलम्बन को शुद्ध आलम्बन से कहा जा जा सकता है ? शुद्ध आलम्बन में किसी प्रकार का आडबर, अपच, स्वार्थसाधन, धोखा या मायाजाल नही होना चाहिए। वह आलम्मन राग, द्वेप, काम, क्रोध आदि के परिणामो से रहित होना चाहिए। अत निश्चयदृष्टि
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy