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________________ ३१६ सध्यात्म-दर्शन तीनो दु खो मे से किसी भी प्रकार के दुप से, विपनि मे, चिन्ता से मन अशान्ति के भूले मे भूलता रहता है। अत वस्तुनिष्ठ शान्ति,की मिथ्या मान्यता के कारण सामान्यसाधक ही नहीं, बड़े-बडे साधक अशान्त होते रहते हैं । ____इसीलिए श्रीमानन्दघनजी सभी माधयो की ओर ने शान्ति के सम्बन्ध में विविध प्रश्न पूछते हैं । बहुत से साधक भौतिक सम्पनि मे सम्पन्न होते हुए भी शान्ति मही पाते, वे सासारिक स्वार्थो, लालसाओ, पुन, धन एवं लोक की एपणाओ से लिप्त हो कर बेचैन रहते है। बाहर मान्ति की ललक होते हुए भी उनके अन्दर अशान्ति की आग धधकती रहती है। अध्यात्म-साधक के जीवन में उमके तन, मन, नयन पर अशान्ति की जरा भी छाया नहीं होनी चाहिए, कोई भी कष्ट, आफत, विपम प्रसग, इष्टवियोग अनिष्टसयोग हो, फिर भी साधक मस्त, शान्त और कर्तव्यपरायण होना चाहिए। साधकजीवन के किसी भी क्षेत्र मे, किसी भी कोने में अगर अशान्ति होगी तो उनकी नारी साधना गडबड में पड जायगी , माधना का मजा किरकिरा हो जायगा, प्रभुभक्ति और प्रभुप्राप्ति के लिए किया गया धर्माचरण बेकार हो जायगा । इन्ही सब कारणो को ले कर साधक के जीवन मे कैसी शान्ति होनी चाहिए ? उस शान्ति का स्वरूप क्या है ? उस शान्ति की पहिचान क्या है ? शान्तव्यक्ति के मन की परख कैसे हो सकती है? ये सत्र गान्तिविपयक प्रश्न गान्तिनाथ प्रभु के सामने श्रीआनन्दघनजी ने प्रस्तुत किये हैं। शान्तिनाय भगवान के सामने ये प्रश्न क्यो ? प्रश्न होता है कि शान्तिनाथ प्रभु से ये प्रश्न क्यो पूछे गगे ? उत्तर में निवेदन है कि जो जिस बात का विशेपज्ञ, अनुभवी, अभ्यासी या अधिकारी हो, वही दूसरे अनभिज्ञ, जिज्ञासु और उत्सुक व्यक्ति को उय सम्बन्ध मे बता सकता है । एक तो शानिनाथ प्रभु का नाम ही शान्ति का नाथ-शान्ति के स्वामी है । दूसरे, शान्तिनाथ प्रभु अपनी माता अधिरारानी के गर्भ मे थे, तभी उस सारे प्रदेश मे महामारी का उपद्रव चल रहा था। आपकी माताजी ने आपका स्मरण व ध्यान किया, जिससे समग्र प्रदेश मे शान्ति हो गई । सारा उपद्रव समाप्त हो गया । इसी कारण जन्म से पहले ही आपके माता-पिता ने आपका नाम शान्तिनाथ रखा था । अतः शान्तिनाथ प्रभु के सामने सर्वागपूर्ण शान्ति
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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