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अध्यात्म-दर्शन
घ्न, अद्वैत, प्रीतिल्प धर्म के आचरण (निश्चयनय से स्वस्पाचरण) करने की बात की मग ते इति तक पुष्टि की गई है। साथ ही यह बता दिया है, इस प्रीतिधर्म के पालन में बाधक और साधक तत्व कौन-कौन से हैं ? प्रीति की प्रतीति, एकपक्षीय प्रीति का निराकरम, प्रीति के लिए परमात्मनिधि या दर्शन, उसका स्वल्प, और वैसा क्षेत्र, काल और पात्रता प्राप्त होने पर धन्यता तथा परमात्मचरणो मे निवास आदि बातो का भलीभांति समावेश भी बखूबी से अध्यात्मपयोगी श्रीआनन्दघनजी ने किया है।
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