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________________ ३०२ अध्यात्म-दर्शन अर्थ साक्षात् आत्मानुभवी (आत्मस्वरप के यथार्थ ज्ञाता) सद्गररूपी माघ यदि प्रवचन (पारमायिक सर्वहितकारी, नर्व जीवों के प्रति उच्च कोटि फा भावकरुणाल्प उपदेश=भाप्रवचन स्पी दिव्य अंजन ले कर हृदयरपी नेत्रों में आंजें तो शिप्यस्प जिज्ञासु साधक का दर्शनमोह-मिथ्यात्वरूप नेत्रान्धवरोग दूर हो जाता है, और वह परमोत्कृष्ट आत्मधर्मरप या आत्मगुणरत्नो का अविनाशी निधान (धन का खजाना) को प्रत्यक्ष देखने लगता है। साथ ही ऐसे खुले हुए हृदयचक्षु (दिव्यनयन) से मेरुपर्वत जैसी महिमा वाले जगत् के स्वामी--परमात्मा का साक्षात् दर्शन हो जाता है । भाष्य धर्मप्राप्ति का फल • परमात्मसालात्कार इस गाथा मे आत्मधर्म का फल बताया गया है। जो व्यक्ति इस पात्मधर्म को प्राप्त कर लेता है, उनके हृदय की आखो मे यदि आत्मस्वरूप के ज्ञाता गुरुदेव प्रवचनत्पी अजन आज दें तो अपनी आत्मा ही गुणरत्नो की निधि के रूप मे दिखाई दे सकती है। साथ ही मेहगिरि-महम महिमावान् वीतराग भगके भी नाक्षात्कार होने लगता है । मसार में बहुत-से स्यूल वुद्धि वाले लोग परमात्मा एव आत्मा को प्राप्त करने के लिए पहाड, नदी, गुफा, तीर्य आदि में जाते हैं, परन्तु सद्गुन के ससिद्धान्त को हृदयगम किये विना इनके वास्तविक दर्शन प्राप्त नहीं हो सकते, और न ही परमात्मधन मिल सकता है। प्राचीन काल मे तान्त्रिकविद्या के प्रभाव मे भजन लगा कर जमीन में गडी हुई वस्तु या निधि को देख सकते ये, वर्तमान मे भूगर्भवेत्ता जमीन के गर्भ में पानी आदि का पता लगा लेते हैं। इसी प्रकार सद्गुरु भी प्रवचनरूपी अजन हृदयचक्षु मे मोज दें तो उसके महाप्रकाश से साधक भी आत्मा की महामूल्य गुणनिधि तथा तीन लोक के स्वामी आत्मदेव तया यात्म परमात्मधन, एव लोकालोक-स्वरूपयुक्त ज्ञानधन जानदेख सकता है। इस गाथा मे चार वाते सूचित की गई है-(१) समदर्शीसद्गुरु को ढूंढ कर उनकी सेवा करना, (२) निग्रंन्यप्रवचन =आत्मलक्षी आप्तवचन का श्रवण-ममन करना, (३) सद्गुरु के उपदेशरूप अजन से हृदयनेत्र मे दिव्यप्रकाश
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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