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________________ वीतराग परमात्मा की चरणसेवा २६५ किये विना परमात्मा की सेवाभक्ति के नाम पर नामकामना वश विविध अनुप्ठान करना-कराना। २-किसी लौकिक या भौतिक फल प्राप्ति की माशा से जानबूझ कर भगवान् के नाम की ओट मे त्रिया करना, जो मोक्षप्राप्ति के बदले ससार मे भटकाने वाली हो। ३--गच्छ, मत, पथ, सम्प्रदाय आदि का कदाग्रह, कलह वढाना, जनता मे भगवान् के नाम पर सम्प्रदायपोषण, परस्पर कलह, झगडे, विद्वेष आदि पैदा करके अपना स्वार्थ सिद्ध करना। ४-तत्त्वज्ञान की बातें बघार कर भोलेभाले लोगो को भगवान् के नाम से सम्प्रदाय, मत, पथ, चला कर उसमें फंसाना, कट्टरता बढाना, और उनसे स्वार्थ सिद्ध करना, अथवा स्वय मोहजाल में फंसना। ५.- अनेकान्तवादयुक्त कथन से ओतप्रोत जिनवचन या कथन की उपेक्षा करके मनमाना व्यहार-धार्मिक आचार-विचार प्रचलित करना, और वह भी परमात्मा के नाम की ओट मे । अथवा ऐसे स्वच्छन्द धर्माचार एव विचार का वीतराग के नाम से पोपण करना, जिससे सिवाय ससारफल के और कुछ पल्ले न पडता हो। ६-देव, गुरु धर्म पर शुद्धश्रद्धा व शुद्ध विचार न रखना, अथवा इनके नाम से मिथ्या देव, गुरु, धर्म को पकड लेना अथवा इन्हे अनावश्यक बता कर स्वच्छन्द जीवी, पुद्गलानन्दी बनना-बनाना। ७-सूत्रविरुद्ध प्ररूपण, श्रद्धान, आचरण एव अनुष्ठान करना-कराना। ये सव बातें परमात्मा की चरणसेवा मे वाधक है, इनसे बच कर मोक्षप्राप्तिजनक नि स्वार्य क्रियाएँ करना, लौकिक फलाकाक्षा से कोई भी अनुष्ठान न करना, न लौकिक फल प्राप्त करने की अभिलाषा रखना एव गच्छ-मत पथादि के कदाग्रह एव झगडे छोडकर, समभावपूर्वक जिनाज्ञानुसार श्रद्धा, प्ररूपणा और सयमसाधना करनी चाहिये । आत्मा एक है, मोक्षमार्ग एक है, मोक्ष भी एक है। भव्यमुमुक्षु के लिए उचित है, कि एकात्मक सुखप्राप्ति के निरवद्य पथ को अपना कर सवर-निर्जरापूर्वक तपसयम की क्रिया करे। विविध भौतिक फल की इच्छा से की गई क्रिया के फलस्वरूप अनेक गतियो मे बार वार जन्म लेना पडता है,
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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