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________________ सच्ची परमात्म-प्रीति या ग्राम में, तथा एक ही परिवार मे अथवा सममस्कारी कुल या जाति मे जन्म पाना अत्यन्त कठिन है । पतिमिलन के लिए स्वदाहक्रिया : भ्रान्तिपूर्ण इसीलिए अध्यात्मयोगी श्रीआनन्दघनजी का स्पप्ट कथन है कि ऐसी पतिमिलन की मान्यता भ्रमपूर्ण है । यह एक प्रकार की आत्म हत्या है, इस प्रीतिसम्बन्ध की दृढता का मूल वैषयिक आकाक्षा है, जो जैनदृष्टि से निदान ( नियाणा ) है | तात्त्विक दृष्टि से देखा जाय तो इस स्वदाहक्रिया के पीछे आत्मदृष्टि की सर्वथा विस्मृति, गति - आगति के कारणो व कर्म के अचल सिद्धान्त का अज्ञान, विश्व-व्यवस्था की अल्पज्ञता तथा प्राय आवेश और अभिमान के पोषण की दृष्टि से एक प्रकार का आत्महनन प्रतीत होता है । कई व्यक्ति अपनी या अपनी जाति की प्रसिद्धि के लिए भी बहुत धन खर्च करते है, कष्ट सहते हैं और प्राण तक अर्पण कर देते है । इसलिए ऐमे आत्मदाह के पीछे प्रसिद्धि की कामना भी हो सकती है । 3 " ७ T लोकोत्तर दृष्टि से भी काष्ठभक्षणक्रिया से मिलन नहीं काष्ठभक्षण का पहले जो अर्थ किया गया था, वह लौकिक पति-मिलन की दृष्टि मे था, लोकोत्तरपति - परमात्मा मे मिलन की दृष्टि से अर्थ होता हैपरब्रह्म परमात्मा को पति मान कर कई लोग उसे प्राप्त करने हेतु प्रीति के आवेग में आ कर पचाग्नि ताप तपते है, यानी अपने चारो ओर आग से तथा सिर को सूर्य के प्रचण्ड ताप से जला कर अपने सारे शरीर को भस्म कर देते है | किन्तु इस प्रकार मूढतापूर्वक जल कर मरने से भी मुक्ति में विराजित परमात्मा से मिनन सम्भव नही है, क्योकि ऐसा व्यक्ति पता नही मर कर किस गति और योनि मे जायगा ! अत परमात्मा के स्थान (मोक्ष) में उसका मिलाप कदापि सम्भव नही है । 1 , 4 पतिमिलन के ये सब मूढतापूर्ण उपाय देहदमन के सिवाय और कुछ नही हैं । इसी प्रकार परमात्मा के प्रति प्रीति बताने हेतु यदि कोई व्यक्ति मूढतावण देहदमन करता है, तो उसे भी परमात्मारूपी पति प्राप्त नही होता, क्योंकि ऐसे अज्ञानक्रप्ट से शुभभावना हो तो कदाचित् स्वर्गादि भले ही प्राप्त हो जाय, परन्तु परमात्ममिलन या मुक्तिमिलन अथवा निश्चयनय की भाषा गे कहे तो शुद्धात्मभाव मिलन कदापि नही हो सकता । कारण स्पष्ट है कि इसके
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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