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________________ परस्परविरोधी गुणो से युक्त परमात्मा २१३ मगति एक दृष्टि गे की गई थी। इग गाथा मे दगरी दृष्टि मे उन तीनो गुणो की नगति विठाई गई है। अध्यात्मकल्पद्र म' ग-ध में करणा या लक्षण बनाया गया है-परदुख देख कर उसे दूर मा की अथवा दुगरो को विगी प्रकार का दुख न हो, इमे देखने की इच्छा करणा है। व्यवहारदृष्टि में वीतगगप्रभु को परम कागणिक, निष्काम करणाजील कहा जाता है। वे टूमरो को दुखी देख कर उमे उम दुग से छुड़ाने की इच्छा रखने हैं, उमे उक्त दु ख मे छुटकारे का उपाय बताते है । दु य क्यों होते हैं ? उन्हें किगने पैदा किये है ? उनके निवारण के क्या जपाय हैं ? इत्यादि सब बाते वे जगत् के पीडित संसारी जीवो को बताते हैं। इसलिए करणा तो उनमे है ही। परन्तु उनके साय ही जब वे देखते हैं कि मगारी जीव राग, द्वेग, मोह और अज्ञान के कारण या परपदार्थ के सम्बन्ध के कारण दुग पाते है तो अपनी आत्मा के साथ लगे उन परणदार्थों के गम्बन्धो को हटाने में जबर्दस्त तीक्ष्ण वृत्ति भी प्रभु में होती है, वे उन राजीव या निर्जीव परपदार्थों का मोहबन्धन बडी सन्नी मे हटा कर सुण होते है । इगीलिए कहा गया-"तीक्षण पर दुख रीझे रे" यानी बन्चन मे डानने वाले परपदार्यो के जपनी या दूसरो की आत्मा से पृथक् होने गे दु ख में पटे देख कर राजी होते है। वे इन्द्रियदमन मे पुद्गलो को हटाने मे खुग होते हैं। नीमरी ओर वे उदासीन भी रहते हैं। जहां वे देखते हैं कि अनेक प्राणी जानबूझ कर गुभाशुभ कर्म उपार्जन करते हैं, कोई भूठ बोलते है, चोरी, ठगी, बेईमानी, चुगली, माया आदि करते हैं, उन सबके प्रति वे उदासीन रहते है। यानी पापकर्म करने वाले जीवो को देख कर न तो वे उनके प्रति करुणा करते हैं, और न ही उनके प्रति कठोरता (नोध) करते हैं, वे करुणा और तीक्ष्णता से अलग ही उदासीनता या तटस्थता की वत्ति रखते हैं। इस प्रकार परम्परविरुद्ध तीनो बाते प्रभु मे है, विरोधाभास ने युक्त तीनो गुण उनमे एका माथ मौजूद रहते हैं । निश्चयदृष्टि ये देखे तो राग-द्वेप-मोह आदि के कारण दुख पाते हए मासारिक जीवो को देख कर उपदेश, प्रेरणा आदि प्रवृत्ति द्वारा उनके वन्धनमुक्त होने का प्रयत्न वे करते हैं। अथवा परपदार्थो के प्रति आसक्ति के कारण अपनी आत्मा को होने वाले दुःखो के दूर करने की इच्छा चीतराग-परगात्मा
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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