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________________ २१० अध्यात्म-दर्शन प्रश्न होता है कि जब प्रभु राग ग रहित है, नो उनमे करणा और कोमलता [हृदयद्रावकना] काँगे है ? नोकि जमणा और गोगलता दोनों ही प्राय रागजनित होती हैं, फिर भले ही ये दोनो प्रातरागनिन से तथा उनमें ठीक इन दोनो गुणी गे विपरीत नीटना और उदागीनगा को? क्योकि ये दोनो प्राय पजनिन होनी है। फिर गले तरी या प्रशन ए ही क्यों न हो। ____ मतलब यह है कि ये परस्परविरोधी गुण बीनगगपरमात्मा में गुणोगिन हो रहे है, इसका क्या कारण है ? इसी शका का समाधान तथा पररपर विरोधी गुणों में निवास की मगति अनेकान्तसिद्धात द्वारा अगली गाया मे इग पवार बिठाई गई है सर्वजन्तुहितकरणी करणा, कर्मविदारण तीटारण रे। हानादानरहित परिणामी, उदासीनता-वीक्षण रे॥ गीतल० ॥२॥ अर्थ प्रभु मे जो करणा है, वह सर्वजीवहितकारिणी है, वही कोमतता है; तया उनमे तीक्ष्णता (कठोरता) इसलिए है कि वे फर्नगनुओ का समूत छेदन करने मे कठोर हैं । किमी ईष्ट व मनोज रतु को देख कर उगे रागवश ग्रहण करने के तथा अनिष्ट व अमनोज वन्तु को देख कर उसे छोडने के हेपयुक्त परिणामो से रहित हैं, तया ससार के समस्त पदार्या या जीवो को समभाव मे देखते हैं, इसलिए उदासीनता का गुण भी उनमे दिखाई देता है । भाष्य विश्ववन्ध परमात्मा के चरित्र में परस्परविरोधी गुणो की प्रथम सगति परमात्मा का चरित्र विविध प्रकार से विचारणीय है। केवल विचारणीय ही नहीं, आदरणीय, पूजनीय और उपासनीय भी है, आनन्दजनक भी है। उपर्युक्त गाया मे प्रभु के चरित्र मे तीन परस्परविरोधी गुणो के समावेश की सगति अनेकातवाद की दृष्टि में की गई है। वे गुण है-कणाकोमलता, तीक्ष्णता और उदासीनता।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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