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________________ परमात्मा की भावपूजानुलक्षी द्रव्यपूजा २०७ प्राप्तव्य अलम्यलाभ को गवा कर बाद मैं हाथ मल-मल कर पछताएगा। अथवा परमात्मपूजा का यह अवसर बार-बार नही मिलेगा। अगर इसे चूक गए तो परमानन्दपद-प्राप्ति के बदले दुखद्वन्द्ववईक जन्ममरण के चक्र मे भटकना पडेगा । वार-बार जन्ममरण के दुख से बचना हो तो मावपूजा का आलम्बन लेना ही उत्तम है। सारांश इस स्तुति मे श्रीआनन्दघनजी ने परमात्मा की भावपूजानुलक्षी द्रव्यपूजा के विविध प्रकार बता कर अन्त में भावपूजा और प्रतिपत्तिपूजा पर जोर दिया है, माथ ही पूजा का रहस्य बता कर इसे शुद्ध आत्मस्वरूप के लक्ष्य से करके आनन्दघनमय पद प्राप्त करने का सकेत किया है । इस प्रकार की समझपूर्वक की गई परमात्मपूजा से अन्त में प्राप्तव्य जो लोकोत्तर लाभ-सच्चिदानन्दमय परमात्मपद अथवा उक्त पद का जो स्थान है, वह मिलता है । ., अव आगामी स्तुति मे श्रीआनन्दघनजी परमात्मपूजा मे पहले के परस्परविरोधी गुणो मे युक्त परमात्मा के यथार्थ स्वरूप का रहस्योद्घाटन करते हैं।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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