________________
२००
अध्यात्म-दर्शन
भाध्य
परमात्मापूजा के विविध प्रकार परमात्मापूजा से अपनी आत्मा को जगाने के लिए और भी अनेकों प्रकार है। श्रीआनन्दघनजी ने उन युग में प्रचगित द्रगपूजा या मातारा जा वे ?', २१ और १०८ उन तीन प्रकारो का उलम पिया है। परन्तु यह द्रव्यमानी तभी नही अर्य मे सार्थक हा सानी है, जब पूर्वाना विधि में इन सबा नार तदनुकूल शुभ या शुद्ध मावो या तार जुडा हो। अन्यथा, वह पता चल स्थूलपूजा या यान्त्रिक क्रिया बन कर रह जायगी। मनन्द प्रसार गरी पूजा उम परम्परा के आचार्या नेग प्रचार बताई है-~-~~-नान (अभियंका था स्नान), २- चदनादि का विपन, वस्त्रयुग त्र-परिधान,' ४-~~वासपूजा (वासक्षेप या सुगन्धित वस्तु, ५--पुप्पपूजा (युन न नहाना) ६-- पुरमाला, ७--पुप्पो की आगी-रचना, ८-चूर्णपूजा, [बरास का चूर्ण], Eध्वज पूजा, १०-आभूषणपूजा, ११---पुष्पगृहपूजा, १२--गुगुममेघ [पुष्पवृष्टि करना), १३-~अष्टमगलपूजा (नश्तरी या हाय में बाट मागनिका को वाम कर खडे रहना), १४-धूप-दीप-गूजा, १५-गीनपूजा, (ताललयसहित प्रभुगुणगान करना) १६ नृत्यपूजा (प्रन की प्रतिमा के आगे नृत्य करना) १७सर्ववाद्यपूजा। ।
- इसी प्रकार २१ प्रकार्ग द्रव्यपूजा भी उन युग में प्रचलित थी। वह इस प्रकार है- ~-जलपूजा, २-वस्त्रपूजा, :..-चन्दनपूजा, ४-पुष्पपूजा, ५-वासपूजा, ६-चूर्णाचूर्णपूजा (बराम के चूर्ण मे नन्दन टालना), ७--- पुष्पमाला, ८-जप्टमागलिक-पूजा, ६-दीपकापूजा, १०-चूपपूजा, -११---- अक्षतपूजा, १२-ध्वजपूजा, १३-चामरपूजा, १४-~छत्रपजा, १५----मुकुटपूजा, १६-दर्पणपूजा, १७-नैवेद्यपूजा, १५-फूलपूजा, १६-गीतपूजा, २०-नाटकपूजा, २१-वाद्यपूजा ।
इसी प्रकार प्रभुप्रतिमा के आगे सुन्दर फल व नैवेद्य चढा कर १०८ प्रकार से द्रव्यपूजा करने की परम्परा भी उस परम्परा में प्रचलित है। इसी तरह अष्टोत्तरी, चौमठ प्रकारी या ६६ प्रकारी द्रव्यपूजा भी कही-कही प्रचलित है ।
१ वस्त्रयुगल के बदले कही-काही 'चक्षुयुगल' मिलता है।