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________________ अध्यात्म-दर्शन १६६ पेचर या अन्य सुगन्धित द्रध्य नाग जाते है। चन्दन की यह विशेषता है कि उस वृक्ष के कण-कण मे गुगन्ध होती है, यह रामीपवनी रों या लाट-आयादी को भी गुगन्धिन करता है। अपनी जीतनता गंगाप, बिन्द्र जगे विपदंग वाल प्राणियों तक को शान्ति प्रदान करता है। उसकी छाया गे गटने वाले भा गुगन्धभरी गीतलता प्राप्त करते है। उमीलाटी गाट कर बेचने या पन्धर पर घिगने वाले अपकारी भी बदले में प्रतिगोध नहीं, पर ही पान है। नष्ट होते-होते भी चन्दन अपनी लगाटी में भजन या जग नाग्ने गी माला, हवन-सामग्री वान वगैरह दे जाता है। उसी प्रकार पजागा मी यह मानना ग्वे कि मेरी शक्ति या गामर्थ्य का उपयोग भी जीवन के अन्न तव मा प्रकार हो। निरचयनय दृष्टि से चन्दन चटाते ममय यह भावना करे कि प्रभा । जद भीर चेतन की सभी परिणतियां अपने-अपने में होती है। आत्मा के वारतविक स्वरूप में अनगिन वरत गे व्यक्ति बनन्य के लिए जर को अनुकून या प्रतिकूल बताते हैं, पर यह गवगन की भूठी पाना है। मैने चन्दन ने गणा कापरात प्रतिकूल गयोगो मे भी गन को प्रोधी, निलित सग या आध्यानी बना कर गन्ममरण के चक्र को बनाया 1 अन उत्त विकारो मे गनप्त हदय नन्दन का समान शीतल बनाने के लिए आपो पाम आया है। चन्दन के बदले गाई जगह केसर या कु कुम वगैरह चाया जाना है। उग गमय भी ऐगी भावना की जा सकती है। इसी प्रकार अक्षत उपाजिन अन, धन, वैभव, वन आदि का प्रनाक ' उपार्जन को दूसरो में गविभाग न करके अपने आप ही यति रहने वाल न 'चोर' कहा गया है। अन उपार्जन को जपने एव अपने परिवार तक क उपयोग मे मीमित न रख कर उसमे देश, धर्म, समाज, सरफान आदि । '' भाग स्वीकार करना चाहिए। तदनुसार अपनी कमाई का एक बडा जग मित रूप से निकाला जाय, यह व्यवहारनय की दृष्टि से अक्षन-समपण न। प्रेरणा है। - निश्चयनय की दृष्टि मे अक्षत-समर्पण के साथ यह भावना हो कि प्रभो । मेरी आत्मा अक्षत है, उज्ज्वल है, धवल है, परद्रव्य के साथ किञ्चित् भा नही लगी हुई है, फिर भी मैं अनुकूल मनोन पदार्यो पर ममत्व और अभिमान
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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