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अनेक नामो से परमात्मा की वन्दना
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परमात्मा हैं। तथा प्रभु का परमेश्वर नाम भी सार्थक है, क्योकि तीर्थंकर अवस्था मे थे, तव वे सर्वोच्च ऐश्वर्यसम्पन्न थे, सब पर आध्यात्मिक दृष्टि से धर्मशासन करते थे। इसके अतिरिक्त प्रभु पुरुपो मे प्रधान मुख्य भी हैं ; क्योकि आपके नाम की सर्वत्र महिमा है। दुनिया के सर्वोत्कृष्ट पदार्थ होने से अथवा मोक्षरुप उच्चपद ही आपका अर्थ (साध्य) होने से आप परमपदार्थरूप है। इसी तरह आप सबके लिए मनोज्ञ ईप्ट वस्तु को प्राप्त किये हुए । होने से परमेष्टी हैं, अथवा आप परम-उत्कृप्ट ईष्ट ज्ञान (केवलज्ञान) को प्राप्त है, इसलिए परमेष्ठी हैं । आपका एक नाम परमदेव भी है। आप परमदेव या महादेव इसलिए हैं, कि दूसरे देव तो रागी-द्वेपी आदि भी हो सकते है, परन्तु आप तो वीतराग हैं, राग-द्वेपरूपी महामल्लो को आपने जीत लिया है। इसलिए आपका परमदेव नाम सार्थक है । आप ससार के समस्त साधको के लिए प्रमाणरूप है । अथवा प्रभु स्वय प्रमाणभूत हैं, उनके साथ किसी की तुलना नही हो सकती ? __ इसके अतिरिक्त परमात्मा विधि हैं-मुमुक्षु (मोक्षार्थी) के लिए विधिमार्ग कौन-सा है, निषेधमार्ग कौन सा है ? इसका यथार्थ विधान करने वाले है अथवा अपनी आत्मा को शुद्धरूप मे स्थापन करने मे विधाता है। द्वादशागी आगमो की अर्थरुप से रचना (निर्माण) करते हैं--प्ररूपणा करते हैं , इसलिए आप विरचि = ब्रह्मा है । अथवा अपने आत्मगुणो की स्वय रचना करने वाले होने से विरचि ब्रह्मा है । आपका आदेश-उपदेश ससार के लिए आत्मगुणपोपक होने से आप विश्वभर है । अयवा आपकी आत्मा मे सारे जगत् की रक्षा वसी हुई होने से भी आप विश्वम्भर है--विश्व-परिपूर्ण है । प्रभु इन्द्रियो के ईश स्वामी होने से अथवा प्रभु के किसी प्रकार की इच्छा नही है, वे समस्त इच्छाओ के स्वामी होने से हपीकेश कहलाते हैं । ज्ञान द्वारा प्राणिमात्र की रक्षा करने मे कारणभूत होने से आप जगत् के नाथ (रक्षक) है । आप अघ यानी पाप के हरने वाले हैं अथवा आपको वन्दन करने से पाप पलायित हो जाते हैं, इसलिए आप अघहर है। आपमे एकाग्र होने वाले तथा आपका नामम्मरण करने वाले पाप से छूट जाते है, अयवा पापी से पापी व्यक्ति के पाप आपके पास आते ही छूट जाते है, इसलिए आप अघमोचन भी हैं । अथवा स्व-आत्मा को शुभाशुभ अघ=आश्रव से मुक्त करते-कराते है, इसलिए आप