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________________ आत्मा और परमात्मा बीच अतर-भग १४३ म भी एक दिन शुद्ध, बुद्ध, गुक्त परमात्मा बन जाऊँगा। मेरी यह आणा अवश्य ही फलित हो कर रहेगी। जिस दिन यह अन्तर टूटेगा, उस दिन मेरा ह वो का सजोया हुआ स्वप्न साकार होगा। और तब ध्यान करने वाला ध्याता, उसका ध्येय-आप परमात्मा, और उसका परमात्मसम वनने का ध्यान तीनो एकाकार हो जायेंगे। इन तीनो मे जिम दिन ऐक्य-अभिन्नत्व सम्पन्न होगा, उस दिन आपके और मेरे वीच मे पड़ा हुआ द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावगत सारा अन्तर दूर हो जायगा, मैं प्रभुमय हो जाऊँगा । । जैनतत्वज्ञान मे यह विशेषता है कि उसके अनुसार योग्य प्रयत्न करने से बहिरात्मा अन्तरात्मा बन कर एक दिन परमात्मस्वरूप प्राप्त कर सकत है। उसके जन्म-मरण के चक्कर मिट जाते हैं, स्वय उसमे परमात्मरूप बन जाने की शक्ति आ जाती है। इसीलिए श्रीआनन्दघनजी उत्साह मे आ कर प्रसन्नता से कह उठते हैं—'प्रभो । मुझे उस गुणकरण के प्रयोग द्वारा अपनी यात्मिक शक्ति अजमा कर मेरा अनादिकालीन ससारीपन मिटाना है । जिस दिन यह ससारीपन मिट जायगा, उस दिन मैं और आप एकमेक हो जायेंगे, मैं परमात्ममय हो जाऊँगा और आपके और मेरे वीच मे रही हुई भेद की दीवार ढह जाएगी।' जिस दिन ध्याता, ध्येय और ध्यान की इस प्रकार की एकता हो जाए उस दिन उक्त ऐक्य के फलस्वरुप अन्तर मे अनहद मगलवाद्य वज उठग जिनसे उस आनन्द को धोतित करने वाले अनाहत-निनाद (शब्द-ध्वनि) सतत मुनाई देगा। जैसे दुनियादार लोग अपनी इच्छितवस्तु का प्राप्ति की खुशी मे मगल वाजे बजाते हैं, वैसे ही साधक को भी जब अपने ईष्ट साध्य की प्राप्ति हो जाती है तो उस खुशी को प्रगट करने से लिए आनन्द के अनाहत मगल-ध्वनिमय वाद्य उसके अन्तर मे बज उठते है। परमात्मा और आत्म की एकता के उस रूप की महिमा गाने मे तीनो लोक मे कोई समर्थ नहीं है और न उसे शब्दो से प्रकट करने में कोई समर्थ है। नेति-नेति' (इसके आगे कुछ नहीं कहा जा सकता) कह कर वाणी भी उस अभूतपूर्व आनन्द का वर्णन करने में असमर्थ हो जाती है। इसीलिए श्रीआनन्द- घनजी जीवात्मा-परमात्मा के ऐक्य के उस नजारे को अपने शब्दो मे सकेत के
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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