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________________ १२४ अध्यात्म-दर्शन काफूर हो जाती है। जैसे पकाण होते ही अन्धकार मिट जाता है, वैसे तो आत्मसमर्पण के पम्मान का प्रकाश होने हो, त्रमा गारा प्रबेरा दरहो जाता है । वे भ्रम गया है ? गरीर जोर र म नम्बद गभी पदार्या में आत्म. बुट्टि या मैं और मेरेगन गागा नम था, जंगे अग मनी मेमोन का नग हो जाता है दूर मे मीप में चादी का भ्रम हो जाना है, उगो पार अनान एव मोह के कारण परपदार्यों में अपनेपन के जो गातो गये थे, वे गर तत्त्वविचारणा से मिट जाते हैं। उसके जनावा आन्मगमगण पर गहराई मे तानिया चिलग रन पर बुद्धि पर कुहामे की तरह जमे हुए नव दोष दूर हो जाते हैं। गंमारी व्यक्ति की बुद्धि पर अनादिकालीन गम्कारवग जो अज्ञान, मोह, मिथ्यात्व, दुनि दुश्चिन्तन, दुश्चेप्टा, गशय, विपर्यय, बनध्यवनाय, अनिश्चितता, चिन्ता, भय, आशको आदि दोपो की परतो की परतें जमी हुई थी, वे पूर्वोक्त सद्विचार से उखड जाती है, बुद्धि मे निश्चिन्नता व हलकापन महसूस होने लगता है। और श्रुतजान से वढते-बढते जब केवलजान प्रगट हो जाता है, तो छमस्थता के कारण जान पर पड़ा हुआ पर्दा भी हर जाना है , ___इमसे भी आगे चल कर आत्मसमर्पण के साधक को मोक्षरूप परमपदाय एव अनन्तज्ञानादि आध्यात्मिक सम्पत्ति प्राप्त हो जाती है, उसे शाश्वत खजाना मिल जाता है, वह कृतकृत्य हो जाता है, जन्ममरण के चक ने, रागद्वेपादि के चगुल से छूट जाता है, कर्मो से सर्वथा मुक्त हो जाता है और ऐन अक्षय शाश्वत आनन्द के धाम में पहुंच जाता है, जहाँ पहुँचने के बाद लौटना नहीं होता, वही अखण्ड आनन्द के रस में वह निमग्न हो जाता है । वहाँ किमी का झंझट, चिन्ता, फिक्र, या किसी भी प्रकार की मोह-माया नहीं रहती है। वहाँ एकरम आनन्द रहता है। साराश इस पचम तीर्थकर की स्तुति मे श्री आन-दधनजी ने वहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा, इन तीन आत्माओ का स्वरूप बता कर परमात्मा के चरणो में आत्मसमर्पण का वास्तविक उपाय, महत्व और नाम बताया है।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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