________________
परमात्म-दर्शन की पिपासा
१०५
(कुदेव और कुगुरु के साथ वन्दन, नमन, दान, प्रदान, आलाप, सलाप, इस तरह ६ प्रकार का व्यवहार न रखना) ६ भावना (आलकारिक शब्द, मूल, द्वार, नीव, निधान, आधार, भाजन), ६ स्थान (अस्ति, नित्य, कर्ता, भोक्ता, मुक्ति, उपाय), अरिहत आदि १० विनय, इस प्रकार सम्यग्दर्शन के ६७ बोल (अधिष्ठान) विशेष रूप से जानने योग्य हैं। दर्शन आत्मा का मूलगुण है, मोक्ष का द्वार है, धर्म का मूल है। इस पर जितना भी मनन किया जाय, थोड़ा है।