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________________ परमात्म-दर्शन की पिपासा होते ?" सचमुच परमात्मदर्शन के बिना बार-बार ससार मे जन्ममरण की अनर्य-परम्पराएँ खडी होती है, अगर एक बार भी सच्चे माने मे सम्यक् वमोह का आवरण हट कर मुझे आपका सस्यग्दर्शन हो जाय तो यह अनर्थपरम्परा भी मिट जाय या इसकी सीमा आ जाय । परन्तु मोहादि विकारो में आत्मा घिरी होने के कारण शुद्धात्मदर्शन नही कर पाती, जो परमात्मा का सच्चा दर्शन है, उसे नही. प्राप्त कर पाती और न ही उन परमात्मा के वताये: हाए सदर्शन (सत्य) पर अविचल, गाढ और निर्दोपरूप से श्रद्धा ही टिक पाती है। चूंकि सम्यग्दर्शनरहित प्राणी की सिद्धि (कर्ममुक्ति) नही हो सकती, न ससार का अन्त आ सकता है, इसलिए दर्शन देवदुर्लभ है, और उसी की हार्दिक तमन्ना है । ___इस गाथा मे बताई हुई योगी श्रीआनन्दघनजी की बात की साक्षी के रूप मे उत्तराध्ययनसूत्र मे स्वय श्रमण भगवान महावीर स्वामी के गौतमगणधर के समक्ष निकाले हुए उद्गार है नहु जिणे अज्ज दोसई, बहुमए दोसई मग्गदेसिए। 'हे गौतम ! तुम्हे आज जिन (वीतराग परमात्मा) का दर्शन नहीं हो रहा है। अनेको मत (मान्यता) वाले मार्गदेशक दिखाई दे रहे है।' बहुत मे मार्गदेशक लोग परमात्मदर्शन (शुद्ध आत्मदर्शन) इसलिए नहीं करा पाते, उसका कारण श्रीआनन्दघनजी ने इसी गाथा के उत्तरार्द्ध मे स्पष्ट दिया है। इसीलिए वर्तमानकाल मे परमात्मदर्णन अतीव दुर्लभ है, जिसको पाने के लिए वे उत्सुक है। इसीलिए अगली गाथा मे दर्शन की दुर्लभता का विशेष स्पष्टीकरण करते हुए कहते हैं 'सामान्ये करी दर्शन दोहिलु, निर्णय सकल विशेष । मद में घेर्यो रे अंधो केम करे, रवि-शशिरूप-विलेख ?॥ अभिनन्दन ॥२॥ __ अर्थ सामान्यरूप से हो जब आपका दर्शन दुर्लभ हे तो समस्त नयो, प्रमाणो,
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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