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________________ २६६] बहमो भवो। गाण पुफिया ते किं हिण्डा पत्य विझरमि । माइहि तत्रो भणियं माक्य पन्थाउ पभट्टा ॥ भणियो च मिरिमईए तं मामि महातमिणो एए । उत्तारेहि मपुले भौमात्रो विझरलायो । पौणेहि य फलमूलाइएहि प्रविममतवपरियोण । नूणं निहाणलम्बो एम तुह पणमित्रो विहिणा ॥ इय भणिएण ममंभमहरिमवमपयदृपयापुम्नए । उवणणैयार सविणायं पेमलफलमूलकन्दाई ॥ माहहि तो भणियं मावय नेयाणि कप्पणियाणि । • অস্থায় সিন্থি অন্য সময় নিমিমি। भणियं तुमए ता वि य तुहि अणगहो उ काययो । अनहकएण गाढं निवेत्रो होइ पहाणं ॥ परियाणिऊण भावं नवरं महानुयाण गुणान। 'तेहिं अणुग्गश्त्यं कव्वं हियमि काजणं ॥ ॥ माहि तत्रो भणियं जद एवं विगयवलगन्धा । ता अन्ह देह नवरं फसार चिरकालगहियाई ॥ रय भणिएणं तुमए मिग्घं गिरिकन्दगाउ घंत्रण । पजिलाहिया तवमौ परिणयफलमान कहि ॥ पन्थंमि पारिया तह जायामहिण महभावणा । १. मबन्नण कवयं अप्पाणं जीवतोगमि ॥ (EF वेसि।
SR No.010741
Book TitleSamraicca Kaha Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi
PublisherAsiatic Society
Publication Year1926
Total Pages938
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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