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श्री अरिहन्त परमात्मा की मूर्ति के समान उनका पवित्र नाम भी उतना ही उपकारक है। प्रभु-नाम के स्मरण का अचिंतनीय प्रभाव होने का विधान समस्त प्रास्तिक दर्शनकारो ने किया है ।
श्री महावीर स्वामी परमात्मा का नाम लेने से जो भावना उत्पन्न होती है, वह भावना गोशाला का नाम लेने से हमारे हृदय को स्पर्श नही करती, उसका कारण नाम एव नामी के मध्य स्थित कथचित् प्रभेद है।
नाम-स्मरण नामी के साथ प्रगाढ सम्बन्ध स्थापित करके अनामी बनाता है, ख्याति की कामना से मुक्त करने का महान कार्य करता है।
श्री अरिहन्त परमात्मा की ऐसी एक भी अवस्था नहीं है कि जिसका स्मरण, चिन्तन अथवा ध्यान आदि भव्य जीवो को मोक्ष एव मोक्ष मार्ग की प्राप्ति न करा सके।
इस प्रकार मोक्ष-मार्ग के दाता और स्वय मार्ग-स्वरूप श्री अरिहन्त परमात्मा का उपकार अन्य समस्त उपकारो से उच्च स्तर का उपकार है।
किसी भी प्राणी को सम्यक्त्व की प्राप्ति श्री अरिहन्त परमात्मा के चार में से किसी एक निक्षेप की भक्ति करने से ही होती है। ।
तात्पर्य यह है कि सम्यग्-दृष्टि के दान द्वारा जो उपकार श्री अरिहन्त परमात्मा करते हैं, वह समस्त उपकारियो के उपकार के योग से भी अधिक होता है; क्योकि सम्यक्त्व मुक्ति का बीज है और बीज का महत्त्व फल की अपेक्षा अधिक होता है यह लोकमान्य तथ्य है।
देह मे जो स्थान चक्षु का है, मोक्ष-मार्ग मे वह स्थान सम्यग्-दृष्टि का है । अत: उसके दाता श्री अरिहन्त हमे प्रियतम लगने ही चाहिये । यदि हमे वे प्रियतय न लगें तो समझना चाहिये कि हमारी भक्ति कच्ची है।
मिले मन भीतर भगवान