________________
उस स्वभाव पर लिप्त प्रावरण जिस अश मे हटते हैं उसी अश मे सुख-शान्ति की अनुभूति होती है।
कोई भी विकृत पदार्थ अपने धर्म का पालन नही कर सकता, यह एक अटल नियम है । इस नियमानुसार मोह, मिथ्यात्व, अज्ञान आदि से लिप्त प्रात्मा स्वय के मूल धर्म का पालन नही कर सकती, अपना स्वभाव स्पष्ट नही कर सकती।
___ यह प्रात्मा मानन्दमय है, सुखमय है, ज्ञानमय है, इस सत्य मे श्रद्धा . रख कर उसे प्रकट करने के जो वास्तविक उपाय हैं, उसको आचरण मे लाने का सक्रिय प्रयास किया जाये तो इस जीवन मे ही आन्तरिक शान्ति एव आनन्द की अनुभूति अवश्य हो सकती है और वह उपाय है श्री अरिहन्त परमात्मा के प्रति प्रेम एव भक्ति ।
पोद्गलिक सुखो के प्रति प्रगाढ राग के कारण जो मन मलिन एव चचल हो गया है उसे निर्मल एव स्थिर बनाने वाली श्री अरिहन्त परमात्मा की प्रीति और भक्ति है।
महा महिमामयी श्री अरिहन्त-भक्ति
श्री अरिहन्त परमात्मा के साथ प्रेम करने से जन्म-जन्म से चित्त मे स्थित पोद्गलिक सुखो की आसक्ति का रूपान्तर एव मलिन वासनामो का ऊर्वीकरण हो जाता है। जो अप्रशस्त वृत्तियाँ हैं, वे श्री अरिहन्त परमात्मा के प्रेम के प्रभाव से प्रशस्त एव पवित्र बन जाती हैं। पुद्गल के राग का स्थान प्रात्म-रति ले लेती है । केवल स्वय के सुख के राग का स्थान समस्त प्राणियो के सुख का विचार ले लेता है । यही एक भक्तियोग की प्रमुख विशेषता है।
मोह की प्रबलता के कारण अथवा भौतिक सुखो की तीव्र आसक्ति के कारण जिन चित्त-वृत्तियो को विरति-धर्म (त्याग-वैराग्य) के स्व पर कल्याणकारी पथ की ओर उन्मुख करने का कार्य अत्यन्त कठिन ज्ञात होता है, वह
ا
मिले मन भीतर भगवान
س