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पत्र-दूसरा
मन और उसके कार्य
प्रिय बन्धु !
__तुमने मेरे पत्र को पुनः पुनः पढकर उस पर पर मनन किया, यह जान कर सतोष की अनुभूति करता हूँ। यही पद्धति चालू रखोगे तो प्रगति बहुत शीघ्र होगी।
तुम्हारे पूछे हुए प्रश्नो के उत्तर निम्नोक्त है-- प्रश्न-मन शब्द से क्या समझा जाये ?
उत्तर- अनुभूति का जो आन्तरिक साधन है, उसे मन कहा जाता है । हमे अपनी चेतना से अनुभव होता है। यह अनुभव जिस विषय मे अथवा जिन साधनों से होता है उनके मुख्य दो प्रकार है-एक बाह्य और दूसरा आन्तरिक । उनमे बाह्य प्रकार स्थूल है, जो दिखाई पड़ता है। उसके स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रिय ये पाँच विभाग है।
स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा हमे शीत - उष्ण, कोमल-कठोर आदि स्पर्शों का अनुभव होता है।
रसनेन्द्रिय के द्वारा हमे कटुक, तीक्ष्ण, खट्ट, मीठे ग्रादि रसो का अनुभव होता है।
घ्राणेन्द्रिय द्वारा हमे सुगध और दुर्गन्ध का बोध होता है। चक्षुरिन्द्रिय द्वारा हमे लाल, पीला, बादली आदि रगो का तथा चौरस, लम्ब चौरस, गोल, लम्ब गोल, त्रिकोण, चतुष्कोण, बहुकोण, समाकृति, विषमाकृति आदि आकारो का ज्ञान होता है। और वैसे ही श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा हमे मद, तीव्र , अति तीव्र, मधुर, कर्कश आदि स्वरो का ज्ञान होता है ।