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________________ पितृ शिक्षा निर्दोष आहार लेने वाले, बाईस परीषहों के विजेता, क्षमाशील, इन्द्रियों का दमन करने वाले, निरारंभी, जितेन्द्रिय, रातदिन सिद्धान्तों के ज्ञान कार्यों में लगे रहने वाले, नियम तथा धर्म की रक्षा के लिये शरीर का निर्वाह करने वाले, प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहने वाले, रात्रि को आहार तो क्या जल तक ग्रहण न करने वाले, सब पर समान भाव रखने वाले, बिना किसी में राग रखे सत्य मार्ग का उपदेश देने वाले, प्राणि मात्र की रक्षा करने वाले, मुखवस्त्रिका को मुख पर धारण करने वाले, कष्टों को सहन करने वाले गुरु ही सर्व श्रेष्ठ होते हैं। बेटा ! गुरुओं के यह गुण तुमको संक्षिप्त रूप में बतलाए गए है। आगम ग्रंथों में इनका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। जब तुम को भविष्य में उनका ज्ञान होगा तो तुमको विशेष तत्व का बोध होगा। सोहनलाल-पिता जी ! आपने संक्षेप में भी जो अत्यन्त उपयोगी तथा कल्याणकारी ज्ञान मुझे दिया है उस पर मैं निरन्तर मनन करता रहूंगा। -
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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