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सत्य में निष्ठा पुरिसा सच्चमेव सममिजाणाहि
सच्चेसणाए से उवहिए से। मेहावी मारं तरति सहिते धम्ममादाय सेयं समणुपस्सति ॥
आचारांग, दूसरा अध्ययन, उद्देश्य ३ हे पुरुष ! सत्य को भली भांति जान । उसकी प्राप्ति के लिये शोध कर प्रयत्न कर। सत्य के प्राप्त होने पर उस में अपने प्रात्मा को उपस्थित कर अर्थात् उस पर पूर्णतया श्राचरण कर । जो बुद्धिमान् ऐसा करता है वह मृत्यु पर विजय प्राप्त करता है तथा धर्म को साथ लेकर श्रेय तथा कल्याणकारी गति को प्राप्त करता है।
इस पाठ मे कितना गंभीर रहस्य है। इस से यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि सत्य के विना आत्मा का कल्याण होना असम्भव है। धर्म की उत्पत्ति सत्य से होती है।
'सत्याद्धर्मो उत्पद्यते' सत्य से धर्म उत्पन्न होता है।
जैनागमों मे सत्य को इतना अधिक महत्व दिया गया है कि यदि आचार्य उपाध्याय आदि अपने जीवन मे एक बार भी