SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चाङ्ग सम्बन्धी विचार ३४४ लिये अखिल भारतीय मुनि सम्मेलन का आयोजन करे। यह सम्मेलन किसी ऐसे स्थान पर शीघ्र से शीघ्र किया जावे, जहां पंजाब के साधु भी सुगमता से पहुँच सके। इस सम्मेलन में इन सभी विषयों के सम्बन्ध में शास्त्रानुसार निर्णय किया जावे। यह आवश्यक है कि इस मुनि सम्मेलन मे कान्स की वर्तमान टीप को अवधि समाप्त होने के पूर्व ही भविष्य के लिये नई टीप बनाली जावे । इस सम्मेलन मे हमारे द्वारा तयार की हुई जैन ज्योतिष तिथि पत्रिका, कान्फ्रेंस की टीप तथा उपस्थित की जाने वाली किसी भी अन्य टीप अथवा तिथि पत्रिका पर विचार करके उसमें आवश्यक संशोधन किये जावे । उक्त सम्मेलन जिस पंचांग को भी बहु सम्मति से पास कर देगा कान्फ्रेंस का यह कर्तव्य होगा कि वह उसको समस्त भारत मे प्रचलित करा कर उसको कार्य रूप में परिणत करे। यदि कान्स की ओर से एक वर्ष के अन्दर सम्मेलन के लिये प्रयत्न न किया गया तो एक वर्ष के पश्चात् हम उसकी टीप को मानने के लिये पाबन्द न होंगे। "जैन संघ की एकता के लिए मैं पत्री के प्रश्न को स्थगित कर देने को तयार हूं, परन्तु यह एकता लूली लंगड़ी नहीं होनी चाहिये। आप मेरे कहे अनुसार समस्त भारत के स्थानकवासी जैन मुनिराजों का एक सम्मेलन कराने का अविलम्व प्रयत्न आरम्भ कर दे। इसी प्रकार स्थानकवासी जैन समाज के संगठन की सुदृढ़ नींव डाली जा सकती है। जब तक स्थानकवासी जैन संघ के सभी सम्प्रदायों की एक प्ररूपणा तथा एक समाचारी न होगी तब तक समाज का अन्धकारपूर्ण भविष्य प्रकाशमान नहीं बन सकेगा।" इस पर डेपूटेशन ने पूज्य श्री से इस विषय में पूर्ण सहमति
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy