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________________ पश्चाङ्ग सम्बन्धी विचार ३४१ गणी उदयचन्द जी महाराज तथा महासती पार्वतीजी महाराज के मध्य पड़े हुए मतभेदों को दूर कर दिया गया। ___इसके पश्चात् जंडियाला में फिर मुनिराजों को एकत्रित किया गया। यहां भी कुछ मतभेदों को दूर कर फिर सबको प्रयत्न करके अमृतसर मे एकत्रित किया गया। यह वार्तालाप अमृतसर में कई दिन तक चलता रहा । अन्त मे मुनिराजों, आर्यिकाओं तथा श्रावकों की सर्वसम्मति से २१ अप्रल १६२४ को संवत् १६८१ विक्रमी में ही एक पूर्ण निर्णय कमैटी नियत की गई। इस कमेटी मे आठ साधु श्री पूज्य महाराज की ओर से, आठ साधु विपक्ष की ओर से तथा १५ उन श्रावकों को रखा गया, जो १६ जनवरी १६२४ को लाहौर को कमेटी मे रखे गए थे। इस प्रकार इस निर्णय कमेटी में कुल ३१ सदस्य रखे गए। इस समय सर्वसम्मति से यह भी तय किया गया कि इस कमेटी की बैठक २५ दिसम्बर १९०४ को होशियारपुर में की जावे । किन्तु होशियारपुर की इस बैठक में श्री पूज्य महाराज के आठों साधुओं के पहुंच जाने पर भी विपक्ष की ओर से कोई साधु महाराज नहीं आए । इसके अगले ही दिन होशियारपुर में २६ दिसम्बर १६२४ को पंजाव जैन सभा की अन्तरंग कमेटी का अधिवेशन भी किया गया। इसके सभापति जम्मू तथा काश्मीर राज्य के भूतपूर्व सचिव दीवान बिशनदास जी सी० एस० आई०, सी० आई० ई० थे। इसमें कई नगरों के चुने हुए श्रावकों के अतिरिक्त होशियारपुर के प्रधान प्रधान श्रावक भी उपस्थित थे। इस बैठक में प्रस्ताव सख्या दो निम्नलिखित रूप मे पास किया गया "चूकि अभी तक भी निर्णय कमेटी ने पत्री के सम्बन्ध मे
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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